________________
णमो सिद्धाण पद: समीक्षात्मक अनुशीलन
विकार का दबना है। वहाँ विकृति निर्मूल नहीं होती। उसकी स्थिति उस अग्नि जैसी होती है, जिस पर राख का एक आवरण छाया हुआ है। आवरण के कारण छूने पर भी अग्नि जलाती नहीं, पर ज्यों ही आवरण को हटा दिया जाए, अग्नि उभर आती है और वह पहले की तरह जलाने लगती है।
एक दूसरा उदाहरण और लें। एक बर्तन में पानी भरा है। पानी का मैला नीचे बैठते ही पानी स्वच्छ प्रतीत होता है, पर ज्यों ही उसे हिला दिया जाए तो नीचे बैठा हुआ मैला तुरंत उभर आता है, पानी को गंदा कर देता है। इसी प्रकार उपशम-श्रेणी पर आरूढ़ साधक के उपशांत या दबे हुए कषाय ज्यों ही उभार में आते हैं, त्यों ही आत्मा को विकृत कर देते हैं, नीचे गिरा देते हैं।
क्षपक श्रेणी क्षय या समूल नाश पर आधारित है। विकासोन्मुख आत्मा कषायों को क्षीण करती हुई अग्रसर होती है। तब उसके पतन की आशंका नहीं रहती है। वह उत्तरोत्तर विकास-पथ पर बढ़ती जाती है। इन दोनों श्रेणियों के आरोह-क्रमों में जो अंतर है, वह मननीय है।
९. अनिवृत्ति-बादर गुणस्थान ____ जिसमें स्थूल कषाय की अनिवृत्ति होती है अर्थात् कषाय स्थूल- थोड़ी मात्रा में बचे रहते हैं, वह अनिवृत्ति-बादर गुणस्थान है। इसका अभिप्राय यह है कि इस अवस्था में आत्मा कषाय से प्राय: निवृत्त हो जाती है। इससे पूर्व आठवें गुणस्थान में कषाय की निवृत्ति स्थूल या थोड़ी मात्रा में होती है। उसे निवृत्ति-बादर कहे जाने का यही कारण है। नौवें गुणस्थान को अनिवृत्ति-बादर इसलिए कहा जाता है कि वहाँ कषाय थोड़ी मात्रा में अवशिष्ट रहता है। सारांश यह है कि आठवें गुणस्थान का नाम, जो कषाय-निवृत्त हुआ, उसके आधार पर किया गया है और नौवें गुणस्थान का नाम, जो कषाय-निवृत्त नहीं हुआ, उसके आधार पर किया गया है।
|१०. सूक्ष्म-संपराय गुणस्थान
दसवाँ सूक्ष्म-संपराय गुणस्थान है। संपराय का अर्थ लोभ है। इस गुणस्थान में लोभ का सूक्ष्म अंश विद्यमान रहता है। आत्मा के प्रबल पराक्रम द्वारा कषाय के अन्यान्य अंशों के उच्छिन्न कर दिए जाने पर भी कुछ सूक्ष्म लोभांश रह जाता है। उस अवशिष्ट रहे लोभांश की अपेक्षा से इसका यह नामकरण हुआ है।
११. उपशांत-मोह गुणस्थान
ग्यारहवाँ उपशांत-मोह गुणस्थान है। इसमें केवल वही आत्माएँ आती हैं, जो उपशम-श्रेणी से आगे बढ़ती हैं। क्षपक श्रेणी से आगे बढ़ने वाली आत्माएँ दसवें गुणस्थान से सीधे बारहवें गुणस्थान में चली जाती हैं। ग्यारहवें गुणस्थान में मोह का उपशम हो जाता है, पर उसे पुन: उभरते भी देर
336