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________________ | सिद्धत्व-पथ : गुणस्थानमूलक सोपान-क्रम । १. श्रद्धान श्रद्धान की शाब्दिक व्युत्पत्ति इस प्रकार है- 'सम्यक्त्वं श्रद्धीयते अनेन इति श्रद्धानम्'- जिससे सयक्त्व के प्रति श्रद्धा उत्पन्न होती है, प्रतीति होती है, उसे श्रद्धान कहा जाता है। उसके चार भेद १. परमार्थ-संस्तव, २. सुदृढ़-परमार्थ-सेवन, ३. व्यापन्न-वर्जन तथा ४. कुदर्शन-वर्जन। जीव आदि नव तत्त्व का ज्ञान, वैसे ज्ञानी जनों की सेवा, सम्यक्त्व-विहीन जनों का अस्वीकार, साहचर्य तथा उनके संग का वर्जन, इनसे सम्यक्त्व के प्रति मन में भावोद्रेक होता है। ये श्रद्धान या आस्था को बल प्रदान करते हैं। इनमें मुख्यत: दो बातें हैं-१ तत्त्वज्ञान-प्राप्ति और तत्त्वज्ञानियों की सेवा। इनसे सम्यक्त्व की प्रेरणा मिलती है। दूसरी दो बातें मिथ्यात्व और मिथ्यात्वियों के संपर्क से बचने के संबंध में हैं, क्योंकि उनके संसर्ग से श्रद्धा से विचलित होने का भय रहता है। श्रद्धान सुस्थिर बनाए रखने के लिए इन चारों की महत्ता और उपयोगिता है। २. लिंग लिंग का अर्थ बाहरी चिह्न हैं, जो आंतरिक वस्तु का संसूचक होता है। धूम को देखकर अग्नि का ज्ञान होता है। धुआँ अग्नि का लिंग है, क्योंकि उसकी पहचान कराता है। - सम्यक्त्व के लिंग- चिह्न या सूचक तीन हैं- १. सुश्रूषा, २. धर्मराग, ३. देव-गुरु धर्म की सेवा का नियम। धर्म-श्रवण की आकांक्षा, श्रुत-चारित्र रूप धर्म के प्रति अनुराग एवं आत्मा के परमोपकारी देव-गुरु-धर्म की यथोचित सेवा-भक्ति है। जिस व्यक्ति में ये लक्षण दृष्टिगोचर होते हैं, वह सम्यक्त्वी है, ऐसा प्रतीत होता है।२।। ___मिथ्यात्वी व्यक्तियों में न तो धर्म-श्रवण करने की उत्सुकता होती है, न उनमें सद्धर्म के प्रति आकर्षण होता है तथा न उनके मन में धर्मनिष्ठ जनों के प्रति भक्ति एवं सेवा की वृत्ति होती है। ३. विनय 'विशेषेण नय: विनय:- विशेष रूप से नत होना, झुकना, अंहकार-शून्य होना विनय है। जैन शास्त्र में- 'विणय मूलो धम्मो'- जो कहा गया है, उसका यही तात्पर्य है कि विनय धर्म का मूल है। १. आवश्यक-सूत्र, अध्ययन-५,-पृष्ठ : ८८. ३. बृहदावश्यक, भाष्य-४४४१. २. जिणधम्मो, पृष्ठ : १०७. 311 HEALINEERS
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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