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BHARATRAMSIRVANESHETRA
णमो सिद्धाण पद : समीक्षात्मक अनशीलन
"अभ्यास-योग द्वारा समता को आत्मसात् करो, अपनाओ। सबको आत्म-सदृश समझो, f भव-जन्म-मरण के भय को मिटा देने वाली शिवसंपदा या मोक्षरूपी संपत्ति तत्काल- आ हस्तगत कर पाओगे।"
जीवन में समताभाव आ जाने से, हिंसा आदि असत् प्रवृत्तियाँ स्वयमेव रुक जाती हैं। ज आत्मोन्मुख बन जाता है। फलत: आत्मा के शुद्ध स्वरूप में उसकी अवस्थिति हो जाती है। सब द से- भव-भ्रमण, जन्म-मरण आदि से वह जीव विमुक्त हो जाता है।
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महाप्रभाविक नवस्मरण में सिद्ध-पद
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'महाप्रभाविक नवस्मरण' नामक ग्रंथ में सिद्ध-पद की निरुक्ति, निष्पत्ति बतलाते हुए उन। शुक्ल-ध्यान की जाज्वल्यमान अग्नि द्वारा कर्मों को दग्ध करने वाला बताया है।
'षिधू' धातु जो गत्यर्थक है, उसके द्वारा सिद्ध शब्द की निष्पत्ति बतलाई है। उसका ऊ अपुनरावृत्ति है। अर्थात् वे मोक्ष गति में चले गए, जहाँ से कभी पुनरागमन नहीं होता।
सिद्ध शब्द का अर्थ यह भी बतलाया गया है कि उनके सब कार्य सिद्ध हो गए हैं। कुछ भी कर शेष नहीं रहा, इत्यादि।
सिद्ध भगवान् के आठ गुण इसी ग्रंथ में सिद्ध भगवान् के आठ गुणों की चर्चा है--
नाणं च दंसणं चेव, अव्वाबाहं तहेव सम्मतं ।
अक्खठिइ अरुवी, अगुरुलहु वीरियं हवइ ।। अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अव्याबाध सुख, अनंत चारित्र, अक्षय स्थिति, अरूपता- अमूर्तता, अगुरुलघुत्व तथा अनंतवीर्य- ये सिद्धों के आठ गुण हैं।
१. अनंत ज्ञान
ज्ञानावरणीय-कर्म का सर्वथा क्षय हो जाने से केवल ज्ञान प्राप्त होता है। वह उन्हें अधिगत । है। जिससे वे लोक और अलोक के स्वरूप को जानते हैं।
१. अध्यात्मकल्पद्रुम, अधिकार-१६, श्लोक-१, पृष्ठ : ३६२. २. महाप्रभाविक नवस्मरण, पृष्ठ : ३०.
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