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________________ SHADISASTRABINIREDIOHERE RSH णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक अनुशीलन। इसके प्रथम सर्ग में श्रुत की प्रशंसा की गई है। इसके प्रथम सर्ग के मंगलाचरण का प्रथम श्लोक परमात्मा या सिद्ध भगवान को उपलक्षित कर रचित है। उन्होंने इसमें लिखा है SSIONmitab _ "ज्ञान-रूपी लक्ष्मी के प्रगाढ़ आलिंगन से उत्पन्न आनंद द्वारा आह्लादित निष्ठितार्थ- कृतकृत्य अथवा अपने समग्न कर्मों को संपूर्णत: क्षीण कर मुक्त-पद को प्राप्त, अज-जन्म-मरण रहित, अव्ययअविनश्वर या शाश्वत, परमात्मा- सिद्ध भगवान् को नमन करता हूँ।" । इस श्लोक में आलंकारिक वर्णन है, रूपक अलंकार का प्रयोग है। ज्ञान में लक्ष्मी का आरोप किया गया है। प्रगाढ आलिंगन का अर्थ नितांत ज्ञानमयता है। नितांत ज्ञानमयता का परिणाम परमानंद है। सिद्धों का ज्ञान और आनंद अव्याबाध है। सिद्ध-पद अविनश्वर है। जिन्होंने यह पद प्राप्त कर लिया, वे उससे कभी च्युत नहीं होते। उनके लिए कुछ करना नहीं रहा। इसलिए वे निष्ठितार्थ हैं। ___इस मंगल श्लोक का प्रारंभ ज्ञान-पद से होता है। जो ज्ञान की सर्वोत्कृष्टता का परिचायक है। ग्रंथ का नाम ज्ञानार्णव है। ज्ञानार्णव की इस पद के साथ सहज रूप से संगति है। ज्ञान का सागर तो ज्ञान जल से ही शुरू होता है, उसी में समाहित होता है तथा उसी में पर्य्यवसित होता है। ग्रंथ के नाम और ग्रंथ के विषय के साथ इस श्लोक का सामंजस्य है। इससे विषय की महनीयता सूचित होती है। परमात्मा या सिद्ध को नमन करने के पीछे आचार्य का एक और भाव है। ज्ञानार्णव में उनके द्वारा बताए गए साधना-पथ का परम लक्ष्य परमात्म-पद ही है। इसलिए इस नमस्कारात्मक श्लोक के साथ यही भाव जुड़ा है कि ज्ञानार्णव के अध्येता- अनुकर्ता साधक परमात्म-पद का लक्ष्य लेकर चलें। इस ग्रंथ के पठन, पाठन, मनन तथा परिशीलन का यह मुख्य फल है।' मोक्ष का लक्षण : स्वरूप नि:शेष कर्म-च्युति, प्रदेश, स्थिति तथा अनुभाग मूलक समस्त कर्मों के संबंधों का विध्वंस, विनाश, जन्म का- संसार में आवागमन का प्रतिपक्ष- निरोध, यह मोक्ष का लक्षण है। अर्थात् मोक्ष वह है, जहाँ नि:शेष कर्म नष्ट हो जाते हैं तथा आवागमन मिट जाता है। मोक्ष वह है, जहाँ वीर्य आदि गुण विद्यमान रहते हैं, जो सांसारिक जन्म-मरण आदि के क्लेशों से परिच्युत- रहित हैं तथा जहाँ आत्यंतिक चिदानंदमयी अवस्था प्राप्त होती है। जहाँ अत्यक्ष १. ज्ञानार्णव, सर्ग-१, श्लोक-१. 285 TOR
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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