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________________ णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक अनुशीलन । ढ्याश्रय महाकाव्य में सिद्ध-चक्र का उल्लेख आचार्य हेमचन्द्र रचित संस्कृत 'याश्रय महाकाव्य' का प्रथम श्लोक निम्नांकित है अर्ह मित्यक्षरं ब्रह्म, वाचकं परमेष्ठिनः । सिद्धचक्रस्य सद्बीजं, सर्वत: प्रणिदध्महे ।। अहम्- यह अक्षर ब्रह्म या परमेष्ठि का वाचक है। यह सिद्ध-चक्र का श्रेष्ठ बीज है। उसका हमें सब प्रकार से ध्यान करना चाहिए।' ढ्याश्रय महाकाव्य के टीकाकार श्री अभयतिलक गणी ने इसकी व्याख्या करते हुए लिखा है अ+++अ+म् = अर्हम्- इस वर्ण समूह का हमें सब क्षेत्र में, सर्व काल में प्रणिधान या ध्यान करना चाहिए। न्यस्त- ध्यातारूप अपनी आत्मा अर्हम् बीज में न्यस्त या स्थापित है तथा अर्हकार रूप ध्येय से सब ओर आत्मा वेष्टित है। हमें ऐसा चिंतन करना चाहिए अथवा अर्हम् शब्द द्वारा वाच्य अरिहंत भगवान् रूप ध्येय से अपनी आत्मा को अभिन्न मानते हुए ध्याता का, आत्मा का ध्यान करना चाहिए। यहाँ जो आत्मा है, वहीं अरिहंत है, जो अरिहंत है, वही आत्मा है। इससे अभेद-परिधान- ऐक्यमूलक ध्यान निष्पन्न होता है। तात्पर्य यह है कि ध्याता, ध्येय और ध्यान इन तीनों की एकता यहाँ सध जाती है। नम त्रिषष्टि-शलाका-पुरुष-चरित में सिद्ध-नमन आचार्य हेमचन्द्र रचित त्रिषष्टि-शलाका-पुरुष-चरित के अंतर्गत पंच नमस्कार-स्तोत्र में सिद्ध-पद को नमस्कार करने का उल्लेख है। वह श्लोक निम्नांकित है सिद्धेभ्यो नमस्कार, भगवद्भ्य: करोम्यहम् । कसैघोऽदाहि यैानाऽग्निना भव-सहस्रजः ।। मैं उन सिद्ध भगवंतों को नमस्कार करता हूँ, जिन्होंने सहस्रों भवों में संचित कर्मों को ध्यान रूपी | अग्नि से दग्ध कर डाला है। स्था कर्म १. ढ्याश्रय महाकाव्य, सर्ग-१, श्लोक-१ : नमस्कार-स्वाध्याय (संस्कृत-विभाग), पृष्ठ : ३८. २. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, पंच नमस्कार स्तोत्र, श्लोक-३, विभाग-४ : नमस्कार स्वाध्याय, (संस्कृत विभाग), पृष्ठ : ६८. 281
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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