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आगमों में सिद्धपद का विस्तार
का फल
जिस समय भगवान् का निर्वाण हुआ। गौतम स्वामी वहाँ उपस्थित नहीं थे। भगवान् ने उनकी रागात्मकता को मिटाने के लिए पहले ही उन्हें देवशर्मा ब्राह्मण को उपदेश देने भेज दिया था। रात हो गई, इसलिए वापस नहीं लौटे क्योंकि साधुचर्या में रात्रि-विहार निषिद्ध है। जब वापस पहुँचे तो भगवान् का स्मरण कर एकाएक मोहासक्त हो गये तदनन्तर शुद्ध परिणामों की गहनता में निमग्न होने लगे और उन्हें आत्म-स्वरूप का बोध हुआ। मोह के बंधन टूटे, जो केवलज्ञान में बाधक थे। उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हो गया। भगवान् महावीर के निर्वाण के अनुरूप ही यह भी एक उत्तम कार्य घटित हुआ।
महावीर ध्यात्मिक से आने
पायोजित अणिकगांसारिक
क्योंकि के आगे मनुष्यों परमानंद
सार-संक्षेप
जैन आगमों में तत्वज्ञान, संयम, साधना, तपश्चरण तथा व्रतमूलक आचार-संहिता का बहुमुखी विवेचन है। आगमों का एक ही लक्ष्य है कि साधक सत् तत्त्वों में निष्ठाशील बनें। तद्विषयक विशद्ज्ञान प्राप्त करे। ज्ञान द्वारा अपने चित्त का परिष्कार करें और जीवन-वृत्तियों में अपने सद् विचारों को साकार करे। यह सब कार्य बहुत सरल तो नहीं है किन्तु विश्वास, संकल्प और भावना की दृढ़ता के साथ जो मनुष्य इस मार्ग पर आरूढ़ होता है, वह कभी निराश नहीं होता।
साधना एक प्रकार का आध्यत्मिक संग्राम है। एक और आत्म स्वभाव या आत्मा के गुण टूटे हुए होते हैं तथा उनके सामने क्रोध, मान, माया, लोभ आदि कषाय हैं। कषाय आत्म-गुणों को पराजित कर आत्मा पर विजय पाना चाहते हैं। उनसे जूझने के लिये आत्म-गुणों को बड़े उत्कर्ष के साथ, बड़े उत्कृष्ट बल के साथ सामना करना होता है।
यद्यपि आत्मा की शक्ति में किसी प्रकार की न्यूनता नहीं होती, वह तो असीम होती है, किन्तु उसे जगाना होता है। जब वह जागरित हो जाती है तो कषाय आदि विभावों के सैन्य को पराजित कर डालती है।
आत्मा की विजय होती है तथा कषाय आदि शत्रु पराजित हो जाते हैं। ऐसी स्थिति हो जाने पर | आत्मा को अपने लक्ष्य- सिद्धत्व प्राप्ति की दिशा में प्रयाण करने में सहज ही अनुकूलता होती है।
साधना का मार्ग बड़ा कंटाकाकीर्ण है किन्तु आत्मा की ऊर्जा द्वारा उन सभी बाधाओं और विघ्नों को समाप्त करने में उसे कोई कठिनाई नहीं होती। साधना के पथ पर उत्तरोत्तर बढ़ता हुआ जीव अपना लक्ष्य-सिद्धत्व प्राप्त कर लेता है। साधक के लिये वही सबसे बड़ा आध्यात्मिक वैभव है।
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आगमों में विविध प्रसंगों में सिद्धपद का विभिन्न अपेक्षाओं से- कही संक्षेप से, कहीं विस्तार से विवेचन हुआ है। इस अध्याय में उसे विश्लेषणात्मक एवं समीक्षात्मक दृष्टि से उपस्थापित करने का
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