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________________ णमो सिद्धाणं पद समीक्षात्मक परिशीलन 1 बंधन है। शुद्ध-अवस्था मुक्ति है । अनुस्रोत का परिणाम संसार है, भवभ्रमण है । प्रतिस्रोत का फल मुक्ति या सिद्धत्व है । भगवान् महावीर द्वारा सिद्धत्व प्राप्ति की रात्रि कल्पसूत्र में 'भगवान् महावीर का चरित्र वर्णित है। जिस रात्रि में पावापुरी में भगवान् महावीर | ने अपने जीवन का परमलक्ष्य पूर्ण किया, समस्त कर्मक्षय कर निर्वाण प्राप्त किया, वह रात्रि आध्यात्मिक उद्योत की महारात्रि थी। देववृंद में अत्यन्त उल्लास उत्पन्न हुआ, वे हर्पित हुए। आकाशमार्ग से आनेजाने लगे, जिससे आनंदपूर्ण कोलाहल सर्वत्र व्याप्त होने लगा । विमर्श - सांसारिक लोग लौकिक सुख के अवसर पर आनंदोत्सव उत्साह मनाते हैं। समारोह आयोजित करते हैं। ऐसी सांसारिक परंपरा है। यह सभी तो व्यावहारिक है। कुछ देर के लिये लोग क्षणिक-| कल्पित सुख का अनुभव करते हैं। जब समारोह और उत्सव समाप्त हो जाते हैं तब वे पुनः सांसारिक दुःख के चक्र में आ फँसते हैं । भगवान् का निर्वाण होने पर देववृंद जो आनंद, उत्साह प्रगट करते थे, वह विलक्षण था क्योंकि भगवान् महावीर ने अपनी तीव्र साधना और उग्र तपश्चरण द्वारा वह सिद्धि प्राप्त की, जिसके आगे और सब प्रकार की सिद्धियाँ फीकी हैं। देवों का हर्ष इस बात का उदाहरण था कि वे महापुरुष मनुष्यों के ही नहीं देवताओं के भी पूज्य हो जाते हैं, जो कर्मक्षय द्वारा समस्त दुःखों का नाश कर, परमानंद में सदा के लिए लीन हो जाते हैं । । देवों द्वारा प्रगट किया गया हर्ष, उल्लास और प्रमोद इस तथ्य का द्योतक था कि पावन - कृत्य करने वाले महापुरुष ही सभी के लिये बंदनीय है। निर्वाण या सिद्ध प्राप्ति से बढ़कर संसार में और क्या पावन कृत्य हो सकता है ? भगवान् महावीर को जब निर्वाण प्राप्त हुआ, तब एक महत्त्वपूर्ण घटना हुई । गौतम भगवान् महावीर के प्रथम गण र तथा सर्वाधिक प्रिय अंतेवासी थे । ज्ञान, दर्शन, चारित्र के सफल संवाहक थे। आंतरिक बाह्य तप के संसाधक थे किन्तु उन्हें केवलज्ञान नहीं हुआ, जबकि उनसे कतिपय कनिष्ठ मुनियों को केवल ज्ञान हो गया था। इसका कारण भगवान् के प्रति भक्ति और अत्यधिक स्नेह था क्योंकि जन्म-जन्मांतर में भगवान् के साथ उनका साहचर्य रहा था । १. कल्पसूत्र, सूत्र- १२४ १२५. 233
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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