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________________ णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन MASTAURANTERASNA । होता है। पूर्ण संवर हो जाने पर पाँच हस्व स्वरों के उच्चारण जितने समय की चौदहवें गुणस्थान की स्थिति पूर्ण करके आत्मा परमात्मदशा- सिद्धावस्था प्राप्त कर लेता है।" "सिद्ध आत्माएँ अस्तित्वभाव से अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत सुख, अनंत बलवीर्य, क्षायिक-भाव, अटल अवगाहना, अमूर्तिक, अगुरु-लघुत्व- ऐसे आठ गुणों से युक्त हैं। नास्तित्व से ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्मों से तथा राग-द्वेषादि भावकर्म और देहादि नौ कर्मों से सर्वथा मुक्त हैं।" ___ “एकार्थक कोष में सिद्धों की विशेषताओं का अनेक अपेक्षाओं से वर्णन किया गया है, जो द्रष्टव्य CRIBERSARAMHelHAMRORISMEDDINUST ___ “णमोक्कार-मंथन में सिद्धों के पद, स्थान, स्वरूप एवं गुण-प्रभुत्व की दृष्टि से उनकी अविनाशिता का उल्लेख हुआ है।" अनुचिन्तन RSS यहाँ जीवन की निम्नतम दशा से उच्चतम दशा तक पहुँचने के क्रम का निरुपण किया गया है, जो तत्त्वज्ञान से प्रारंभ होता हैं, जहाँ सम्यक् श्रद्धान जुड़ा रहता है। जब सम्यक् श्रद्धानयुक्त ज्ञान द्वारा वह तत्त्वों के स्वरूप को भलीभाँति जान लेता है, तब उसे हेय उपादेय, ज्ञेय का भेद-ज्ञान हो जाता है। फिर जो. त्यागने योग्य है, उसे छोड़ देता है। उसे छोड़ने का भाव यह है कि वह भोगमय सांसारिक जीवन से विमुख होकर आत्मोन्मुख बन जाता है। सभी सावद्य-- पापयुक्त प्रवृत्तियों का मन, वचन, काय एवं कृत, कारित, अनुमोदित पूर्वक परित्याग कर देता है। उसका परिणाम यह होता है कि उसके आसव- कर्मागमन-द्वार अवरूद्ध हो जाते हैं। पूर्व संचित कर्म तपोमय साधना द्वारा निर्जीर्ण होते जाते हैं और जो आत्मा का असीमज्ञान, दर्शन आवत था, वह उद्भासित हो जाता है। यह साधक की उत्कृष्ट अवस्था है। अपने अगले चरण में समस्त बाह्य भावों को, जिनमें योग और शरीर भी है, वह पार कर जाता है। मुक्त, सिद्ध और परिनिर्वृत हो जाता है। निम्नतम स्थान से जो आत्मा की यात्रा प्रारंभ हुई थी, वह अंतिम लक्ष्य प्राप्त कर लेती है। फिर आगे कुछ भी करणीय नहीं रहता। आत्मा कृतकृत्य हो जाती है तथा नित्य, अबाधित ,परम आनंद सदा के लिये प्राप्त हो जाता है। SASURBARUM १. जैन दिवाकर ज्योतिपुज, तृतीय खण्ड, पृष्ठ : १०२. ३. एकार्थक कोष-(मुनि शुभकरण), पृष्ठ : १५२, १५३. २. श्री अर्हत् तत्त्वार्थ मीमांसा, पृष्ठ : १२. ४. णमोक्कार-मंथन, पृष्ठ : १४१. Kaanandinim 231 RA NDHR M S । Raatkar HIROMCHARITRADE ITAPARAN
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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