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________________ णमो सिद्धाणं पद: समीक्षात्मक परिशीलन - HAAREERATREAMINARANARASIRATIONAL साधक को कायोत्सर्ग करने के बाद गुरुवंदन करने का और फिर सिद्धस्तवन करने का संकेत किया गया है। इसका आशय यह है कि कायोत्सर्ग की स्थिति प्राप्त करना-सिद्धगति की ओर प्रयाण करना है। कायोत्सर्ग करने वाले साधक का अंतिम लक्ष्य सिद्धत्व ही है। सिद्धस्तव से पूर्व गुरु-वंदन का जो उल्लेख हुआ है, वह बहुत उपयोगी है। जो साधक कायोत्सर्ग | की भूमिका पा लेता है, उसे आगे बढ़ने के लिये गुरु से मार्गदर्शन लेना आवश्यक है क्योंकि गुरु ही सच्चा मार्ग बताते हैं। गुरु के प्रति साधक का सदा विनय-भाव रहना चाहिये। विनयशील साधक सिद्धों की गुण-गरिमा का अंकन करता हुआ उनके जैसा बनने की प्रेरणा प्राप्त करता है। मोक्ष-मार्ग-प्ररूपणा उत्तराध्ययन-सूत्र मे ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप- इन चारों को मोक्ष-मार्ग बतलाया गया है। सर्वज्ञ जिनेश्वर देव ने इनकी प्ररूपणा की। इस चतुर्विध मार्ग का स्वीकार कर जीव सद्गति- सर्वोत्तम गति या मोक्षगति को प्राप्त करते हैं।' विमर्श सम्यग् दर्शन, ज्ञान, चारित्र के साथ-साथ यहाँ तप को भी मोक्षमार्ग के रूप में स्वीकार किया गया है। सम्यग् दर्शन से श्रद्धा विशुद्ध बनती है। सम्यग्ज्ञान से ज्ञान में पवित्रता आती है तथा सम्यक्चारित्र से पापों का प्रत्याख्यान होता है। प्राणातिपात-विरमण आदि इसके रूप हैं। इन तीनों के साथ तप शब्द को जोड़ने का एक विशेष अभिप्राय है। चारित्र का तो संयम-ग्रहण करने वाले सभी साधकों को पालन करना होता है। वैसा करना उनके लिये अनिवार्य है। तपस्या अनिवार्य नहीं है। वह विशेष रूप से की जाती है क्योंकि व्रतों के पालन से आस्रवों का संवरण हो जाता है। नये कर्म आने बंद हो जाते हैं। किन्तु पूर्वजन्म में संचित तथा संयम-ग्रहण करने से पूर्व इस जन्म में संचित कर्मों के क्षय के लिये तपश्चरण आवश्यक है। जब त्रिरत्नात्मक साधना के साथ तप जुड़ जाता है तो वह साधना ओजस्विनी बन जाती है। इसके फलस्वरूप साधक मुक्ति की दिशा में अधिकाधिक प्रगति करता जाता है। इसलिये कहा गया है कि इन चारों को स्वीकार कर साध्य ना-पथ पर आगे बढ़नेवाले साधक सिद्धगति प्राप्त कर लेते हैं। योगनिरोध द्वारा सिद्धत्व की ओर गति उत्तराध्ययन सूत्र में त्रयोदश गुणस्थानवर्ती में वे सयोग- योग सहित होते है। जब उनका १. उत्तराध्ययन-सूत्र, अध्ययन-२८, गाथा-१-३, पृष्ठ : ४६४. 225 THES PARAN BHIMATE RASVES
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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