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णमो सिद्धाण पद: समीक्षात्मक परिशीलन
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सिद्ध तथा औदारिक शरीर
गौतम ने भगवान् से प्रश्न किया- भगवन् ! औदारिक शरीर कितने प्रकार के प्रज किए गए है? । भगवान् ने उत्तर में कहा- औदारिक शरीर द्विविध- दो तरह के बतलाए गए हैं। बद्ध एवं मुक्त उनमें बद्ध वे हैं, जो जीवों द्वारा ग्रहण किये गये हैं। वे संख्या की दृष्टि से असंख्यात हैं। काल की दी से असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी-परिमित हैं। क्षेत्र की दृष्टि से असंख्यात लोक-प्रमाण हैं। | जो मुक्त जीवों द्वारा त्यागे हुए शरीर हैं, वे अनंत हैं। काल की अपेक्षा से अनंत-उत्सर्पिणी अवसर्पिणी-परिमित हैं। क्षेत्र की दृष्टि से अनंत लोक-प्रमाण हैं। द्रव्यत: मुक्त औदारिक शरीर अभ जीवों से अनंत गुण और सिद्धों के अनंतवें भाग जितने हैं।
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इस सूत्र में औदारिक शरीर की संख्या के संबंध में चर्चा है। यह चर्चा काल, क्षेत्र तथा द्रव्य । अपेक्षा से की गई है। काल की अपेक्षा का तात्पर्य यह है कि वे कितने काल या कालचक्रों का प्रमाण लिए हुए हैं। क्षेत्र का तात्पर्य स्थान से है। द्रव्य का तात्पर्य शरीर रूप द्रव्य की अपेक्षा से है। इन तीनों अपेक्षाओं से यहाँ गौतम के प्रश्नों का भगवान् ने समाधान किया है।
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सिद्धत्व का काल
सिद्धत्व के स्वरूप को विविध अपेक्षाओं से समझने हेतु प्रज्ञापना-सूत्र में भिन्न-भिन्न प्रकार से गौतम द्वारा प्रश्न किए गए। उसमें एक प्रश्न यह था कि सिद्ध जीव सिद्धपर्याय में या सिद्धावस्था में कितने समय तक स्थित रहते हैं?
इसके समाधान में भगवान द्वारा बतलाया गया है कि सिद्ध सादि हैं तथा अनंत हैं।
भगवान् के इस उत्तर से यह स्पष्ट हो जाता है कि जो अनंत है, वह तो सदैव रहता है। सिद्धत्व । प्राप्त करने की आदि है क्योंकि बंधनों के कट जाने पर सिद्धत्व प्राप्त होता है। जब वह अधिगत हो जाता है तो कभी नष्ट नहीं होता। वह शाश्वत है। सर्वथा एक ही रूप में रहता है। इसलिए कितने काल तक रहने का सिद्धों के लिये कोई प्रश्न ही नहीं उठता। सामान्य श्रोताओं और उपासकों को ज्ञान कराने हेतु इसकी यहाँ चर्चा की गई है। वास्तव में यह तथ्य पहले कई प्रसंगों में स्पष्ट किया जा चुका है।
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सिद्ध-दृष्टि ___गौतम- भगवन् ! सिद्ध जीव क्या मिथ्या-दृष्टि, सम्यक्-दृष्टि तथा सम्यक्-मिथ्या-दृष्टि होते हैं?
१. प्रजापना-सूत्र, पद-१२, सूत्र-१०, पृष्ठ : ९८.
२. प्रज्ञापना-सूत्र, पद- १८, सूत्र- १२६५.
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