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णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन ।
विशेष
इस कथन का सारांश यह है कि संवर द्वारा जब कर्मों के आने का प्रवाह रुक जाता है, तब आत्मा के कर्म नहीं लगते। संवर के साथ-साथ कर्म-निर्जरण की स्थिति भी बनती है। जो संवर करेगा अर्थात शुभ-अशुभ कर्मों को रोकेगा, तब वह करने की दृष्टि से तपश्चरण को स्वीकार करेगा। इस प्रकार संवर के साथ निर्जरा भी प्राप्त होगी। उसका परिणाम यह होगा कि साधक कर्मों के नवसंचय के निरोध तथा संचित कर्मों के अपचय- नाश से मुक्तत्व या सिद्धत्व पा लेगा।
औपापातिक-सूत्र में योग निरोध : सिद्धावस्था
औपापातिक-सूत्र में एक स्थान पर योगों के निरोध और सिद्धावस्था का वर्णन किया गया है। उस संदर्भ में गौतम ने भगवान् महावीर से प्रश्न किया- भगवन् ! क्या सयोगी- मन, वचन और शरीर से युक्त जीव सिद्ध, बुद्ध, मुक्त परिनिर्वृत होते हैं? तथा समस्त दु:खों का अंत करते हैं? भगवान् ने उत्तर दिया- ऐसा नहीं होता।
भगवान् ने योग-निरोध की चर्चा करते हुए प्रतिपादित किया कि वे (साधक) सर्वप्रथम आहार आदि पर्याप्तियों से युक्त, समनस्क पंचेंद्रिय जीव के जघन्य- सबसे न्यून मनोयोग के निम्नस्तर से | असंख्यात- गुणहीन मनोयोग का निरोध करते हैं।
तत्पश्चात् पर्याप्त-पर्याप्तियों से युक्त द्वीन्द्रिय जीव के जघन्य वचनयोग के निम्नस्तर से असंख्यात गुणहीन वचनयोग का निरोध करते हैं। तदनन्दर अपर्याप्त-पर्याप्तियों से रहित सूक्ष्म नीलन-फूलन जीव के जघन्य योग के निम्नस्तर से असंख्यात गुणहीन काययोग का निरोध करते हैं।
इस उपाय या उपक्रम द्वारा वे पहले मनोयोग का निरोध करते हैं। मनोयोग का निरोध करने के पश्चात् वचनयोग का निरोध करते हैं। मन और वचन- दोनों के योग का निरोध कर देने पर फिर वे काय योग का निरोध करते हैं। अर्थात् मानसिक, वाचिक तथा शारीरिक प्रवृत्तिमात्र का निरोध करते हैं। अयोगावस्था प्राप्त करके वे ईषत्-स्पष्ट- पाँच हस्व अक्षर अ, इ, उ, ऋ, ल के उच्चारण के असंख्यात कालवर्ती अंतर्महुर्त तक होने वाली शैलेशी अवस्था प्राप्त करते हैं।
शैलेश- मेरु जिस प्रकार अप्रकंपित रहता है, वैसा ही स्थिति साधक प्राप्त करते हैं। उस शैलेशी अवस्था काल में पूर्व-रचित गुण श्रेणी के रूप में रहे हुए कर्मों को असंख्यात गुण श्रेणियों में अनंत कर्मांशों के रूप में क्षीण करते हुए वेदनीय, आयुष्य, नाम तथा गोत्र- इन चारों कर्मों का एक ही साथ | क्षय करते हैं।
इनका क्षय करने के पश्चात औदारिक, तेजस एवं कार्मण-शरीर का संपूर्णत: परित्याग कर देते हैं।
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