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णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन
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मुद्गरपाणि यक्ष जिसकी मैं इतनी उपासना करता हूँ, इस विपत्ति में मेरी कुछ भी सहायता नहीं करता। यह कुछ नहीं है। मात्र काष्ठ का एक पुतला है। | मुद्गरपाणि यक्ष ने अर्जुनमाली के इन विचारों को जानकर उसकी देह में प्रवेश किया। उसके बंधनों को तोड़ डाला। तब यक्ष से आविष्ट अर्जुनमाली ने लोहे का भारी मुद्गर उठाया। उन छओं। उदंड व्यक्तियों की और पत्नी की हत्या कर डाली। वह क्रोध से विकराल हो गया। राजगृह नगर की सीमा के आसपास चारों ओर छ: पुरुष और एक स्त्री- इस प्रकार सात मनुष्यों की हत्या प्रतिदिन करने लगा। चारों ओर आतंक छा गया। ____ संयोगवश भगवान् महावीर राजगृह पधारे और बाहर उद्यान में रुके । राजगृह में सुदर्शन श्रेष्ठी था। वह अत्यंत धर्मनिष्ठ था। जब उसने भगवान् महावीर के दर्शन हेतु जाने का विचार किया तो सबने उसे रोका पर वह नहीं रूका, जाने लगा, अर्जुनमाली ने उसे रोका और मुद्गर को घुमाते हुए वह सुदर्शन के पास आया। सुदर्शन जरा भी भयभीत नहीं हुआ। उसने वहीं से भगवान् को विधिवत् वंदन किया
और सागारिक अनशन व्रत ले लिया। अर्जुनमाली उस पर प्रहार नहीं कर सका । यक्ष उसके शरीर से निकल गया और अपने मुद्गर को लेकर चला गया। शरीर से यक्ष के निकलते ही अर्जुनमाली जमीन पर गिर पड़ा। सुदर्शन ने यह जानकर कि उपसर्ग शांत हो गया, प्रतिज्ञा का पारण किया और अपना ध्यान खोला।
__ सुदर्शन और अर्जुनमाली के बीच वार्तालाप हुआ। सुदर्शन सेठ की धार्मिक बातों से अर्जुनमाली प्रभावित हुआ और सुदर्शन सेठ के साथ भगवान् महावीर की सेवा में उपस्थित हुआ। भगवान् ने धर्मोपदेश दिया। अर्जुनमाली भगवान् के उपदेश से इतना प्रभावित हुआ कि उसने प्रव्रज्या ले ली। उसी दिन से उसने बेले-बेले तपस्या का अभिग्रह किया। स्वाध्याय और ध्यान भी करता था।
भिक्षा के लिए जब वह निकलता तो वे लोग, जिन-जिन के संबंधियों को उसने मारा था, उसे प्रताड़ित करते परन्तु वह समत्वभाव-युक्त रहता। वह सब सहता, कदापि क्रोध नहीं करता । वह जानता, यह कर्म-निर्जरा हो रही है। उसे कभी आहार-पानी मिलता, कभी नहीं मिलता तो भी संयमी जीवन का निर्वाह करते हुए शुद्ध संयम का पालन और विपुल तप करते हुए, छ: महिने पश्चात् पंद्रह दिवसीय संलेखना से अपनी आत्मा को भावित कर, अनशन को पूर्ण कर, वह सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हुआ।
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अनुचिंतन
यह एक ऐसे पुरुष का जीवनवृत्त है, जो कभी अत्यंत क्रूर और हिंसक रहा, पर जब उसने अपने
| १. अंतकृतद्दशांग-सूत्र, अध्ययन-३, वर्ग-६, सूत्र-२-१३, पृष्ठ : ११२, १३०.
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सारिका का पालन