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________________ आगमों में सिद्धपद का विस्तार उल्लेख है. रहते हैं। T अंतर हैएक सौ तक, में इकतीस नका विशद संबंध में ग-सूत्र में व्रितात्मक हुए- सब ननिहासिक दृष्टि से यह वर्णन बड़ा महत्त्व रखता है। विमलनाथ प्रभु के अनंतर अनुक्रम से सिद्धों की | परंपरा की यह एक आगम-प्रमाणित सूचना है।' संप्रभबलदेव इक्यावन सहस्र वर्ष, मल्लि अर्हत् पचपन हजार वर्ष', श्रमण भगवान् महावीर बहत्तर वर्ष विजयबलदेव तिहत्तर लाख वर्ष', स्थविर अग्निभूति गणधर चौहत्तर वर्ष, स्थविर अंकपित अठहत्तर वर्ष', स्थविर मंडित पुत्र तिरासी वर्ष', श्रेयांस अर्हत् चौरासी लाख वर्ष, स्थविर इंद्रभूति बानवे वर्ष, कुंथु अर्हत् पचानवे सहस्र वर्ष तथा पुरुषादानीय पार्श्व अर्हत् एक सौ वर्ष - इस प्रकार पूर्व संकेतानुरूप आयुष्य की अवधि पूर्ण कर ये सभी सिद्ध, बुद्ध, मुक्त परिनिर्वृत तथा सर्व दु:ख रहित हुए। निम्नांकित सारिणी द्वारा यह सूचित है। १. समवायांग-सूत्र, समावाय-४४, सूत्र-२५९, पृष्ठ : १११. २. समवायांग-सूत्र, समावाय-५०, सूत्र-२८२, पृष्ठ : ११५. ३. समवायांग-सूत्र, समावाय-५५, सूत्र-२९३, पृष्ठ : ११८. ४. समवायांग-सूत्र, समावाय-७२, सूत्र-३५४, पृष्ठ : १३१. ५. समवायांग-सूत्र, समावाय-७३, सूत्र-३५९, पृष्ठ : १३४. ६. समवायांग-सूत्र, समावाय-७४, सूत्र-३६०, पृष्ठ : १३४. ७. समवायांग-सूत्र, समावाय-७८, सूत्र-३७०, पृष्ठ : १३७. ८. समवायांग-सूत्र, समावाय-८३, सूत्र-३८५, पृष्ठ : १४१. ९. समवायांग-सूत्र, समावाय-८४, सूत्र-३८९, पृष्ठ : १४२. १०. समवायांग-सूत्र, समावाय-९२, सूत्र-४२३, पृष्ठ : १५२. ११. समवायांग-सूत्र, समावाय-९४, सूत्र-४३१, पृष्ठ : १५४. १२. समवायांग-सूत्र, समावाय-१००, सूत्र-४४९, पृष्ठ : १६०. यह जो सिद्धत्व-प्राप्ति का आयुष्य को लेकर उल्लेख हुआ है, वह जैन-परंपरा के प्रागैतिहासिक | तथा ऐतिहासिक कालीन अनेक घटनाओं का प्रमाणिक विवेचन है। यह जैन आगम-वाड्मय पर अनुसंधान और शोध करने वाले विद्वानों के लिए बहुत उपयोगी है। इससे उन्हें जैन काल-क्रम को समझने में सहायता मिल सकती है। कशिलिक भगवान् ऋषभ वर्तमान अवसर्पिण के तीसरे 'सुषम-दुषम' आरक के उत्तरार्द्ध भाग के इतिहास वालीसवें है। वहाँ के बाद दुःख हीं है। 172 ARRORE
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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