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________________ H RATHI ANTRA T 2 STREAM LARRANGARLS SE ता णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन विविध प्रकार के कर्मों का बंध विविध प्रकार का होता है फिर उसे एक कैसे कहा गया? एक शंका उत्पन्न होती है। यह सही है कि बंध की कोटियाँ भिन्न-भिन्न होती हैं किन्तु आत्मा की स्वतंत्रता का अपहरण जो होता है, वह तो एक जैसा होता है। अर्थात् आत्मा के शुद्ध-स्वरूप का अवरोधन अपने स्वरूप की दलि से एक है। आत्मा स्ववशता से परवशता में जाती है। यह एक स्थिति है। इस दृष्टि से बंध को एक कहा गया है। - इसी प्रकार मोक्ष या छुटकारे की स्थिति भी एक है। कर्मों के आवरणों द्वारा आवृत या अपहृत आत्मा का स्वातंत्र्य उस आवरण से छूट जाता है तब जो आत्मा की उन्मुक्त अवस्था होती है, वह एकरूपता लिए हुए है। HariORIES भवसिद्धिक जीवों द्वारा सिद्धत्व प्राप्ति । समवायांग-सूत्र में सागर, सुसागर आदि विशिष्ट विमानों के देवों के वर्णन के साथ-साथ एक प्रसंग भव्यसिद्धिक जीवों का आता है। वहाँ ऐसा उल्लेख हुआ है कि कतिपय भव्यसिद्धिक जीव ऐसे होते हैं, जो एक मनुष्य-भव ग्रहण कर सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, मुक्त होंगे, परिनिर्वाण प्राप्त करेंगे तथा समस्त दु:खों का अंत करेंगे। __यहाँ सिद्धत्व, बुद्धत्व, मुक्तत्व, परिनिर्वाणत्व और सर्वदुःखान्तत्व- इन पांच शब्दों का उल्लेख हुआ है। जब जीव अनादि काल से बंधे हुए कर्मों से संयम और तपश्चरण द्वारा छूट जाता है, तब जो स्थिति उत्पन्न होती है, उस स्थिति की विशिष्टता के द्योतक ये शब्द हैं। इन शब्दों का मूल आशय एक ही है। जब कर्म-बंधन टूट जाते हैं, तब जीव को साध्य प्राप्त हो जाता है। उनका सिद्धत्व फलित होता SSCDRISTRIANTRE है। इस स्थिति को पाने से पूर्व ही वे ज्ञानावरणीय कर्मों को संपूर्णत: नष्ट कर देते हैं, इसलिए बुद्धत्व या सर्वज्ञत्व उन में होता ही है। बंधन टूट जाते हैं, इसलिये मुक्तता या स्वतंत्रता फलित होती है। ऐसा होने पर आत्मा में परमशांति का उदय होता है, जो सांसारिक सुखों में प्राप्त नहीं हो सका, वही परिनिर्वाण है। । इन शब्दों द्वारा सिद्धावस्था के स्वरूप को इसलिए स्पष्ट किया गया है कि वह जिज्ञासु द्वारा सहज | रूप में आत्मसात् किया जा सके। एक भवसिद्धिक जीवों के सिद्धत्व-प्राप्ति के उल्लेख के पश्चात् आगमकार ने दो भव में सिद्ध होने १. समवायंग-सूत्र, समवाय-१, सूत्र-३. २. समवायांग-सूत्र, समवाय-१, सूत्र-८. 167 3. NAH VERYAB EMATA SEARRIA RAMETER HERNIA Sharwana RAN HUAIPANNA __MARATHI nigmaitra mananews H ARASHTRA AS HMESe
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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