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________________ NRN णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन MAHARAR स्थानांग-सूत्र में मोक्ष का अस्तित्त्व । स्थानांग-सूत्र का ग्यारह अंग-सूत्रों में एक विशिष्ट स्थान है। इसमें तत्त्वों का संख्यात्मक क्रम से उल्लेख है। इसमें दस स्थान हैं। प्रथम स्थान में उन सब पदार्थों का उल्लेख या संकलन है, जो संख्या में एक-एक हैं। इसी प्रकार दूसरे स्थान में उन पदार्थों का संकलन है, जो दो-दो होते हैं। यही क्रम उत्तरोत्तर आगे के स्थानों में चलता जाता है। स्थानांग-सूत्र में मोक्ष का जहाँ-जहाँ विविध अपेक्षाओं से परिज्ञापन हुआ है, उस संबंध में यहाँ विवेचन किया जा रहा है - स्थानांग-सूत्र के प्रथम स्थान में उन पदार्थों के अस्तित्व का उल्लेख है, जो संसार में एक-एक की संख्या में अवस्थित हैं। आत्मा, दंड, क्रिया, लोक, अलोक, धर्म, अधर्म, बंध- इन नौ पदार्थों के उल्लेख के पश्चात् आगमकार ने दसवीं संख्या पर दसवें सूत्र में मोक्ष का उल्लेख किया है। मोक्ष एक हैं, ऐसा उन्होंने लिखा है। यह सूत्र मोक्ष के एकरूपात्मक अस्तित्व का द्योतक है। मोक्ष, मुक्तावस्था या सिद्धावस्था में सर्वथा एकरूपता है। यद्यपि मोक्ष को प्राप्त आत्माएं अनंत हैं, सिद्ध संख्यात्मक दष्टि से अनंत की कोटि तक पहुँचते हैं किन्तु उनके स्वरूप में किसी भी प्रकार का अंतर, भेद या पार्थक्य नहीं एक प्रश्न उपस्थित होता है-जब अनंत सिद्धों के स्वरूप में कोई भिन्नता नहीं है, सर्वथा सदशता है तो फिर उनमें भिन्नत्व-द्योतक सीमा का अस्तित्व कैसे होगा? यहाँ यह ज्ञातव्य है कि जैन शास्त्रानुसार यद्यपि सिद्ध अमूर्त, अशरीरी हैं किन्तु मानव भव में जिस अंतिम देह का परित्याग कर वे सिद्धत्व प्राप्त करते है, उस देह की अवगाहना का दो तिहाई भाग सिद्धावस्था में विद्यमान रहता है। वह अवगाहना सीमा की पृथकता का हेतु बनती है।' सिद्धपद : वर्गणा स्थानांग-सूत्र में सिद्ध पद की वर्गणाओं का वर्णन करते हुए कहा गया है - तीर्थ सिद्ध की वर्गणा एक है। उसी प्रकार अतीर्थ-सिद्धों, तीर्थकर-सिद्धों, अतीर्थंकर-सिद्धों, स्वयंबुद्ध-सिद्धों, प्रत्येक बुद्ध-सिद्धों, बुद्धबोधित-सिद्धों, स्त्रीलिंग-सिद्धों, पुरुषलिंग-सिद्धों, नंपुसकलिंग-सिद्धों, स्वलिंग-सिद्धों, अन्यलिंग-सिद्धों, गृहस्थलिंग-सिद्धों, एक-सिद्धों, अनेक-सिद्धों, अप्रथम समय-सिद्धों तथा अनंतसमय-सिद्धों की वर्गणाएँ एक-एक हैं- उनमें से प्रत्येक कोटि के सिद्धों की वर्गणाएँ अपनी एक-एक हैं। १. स्थानांग-सूत्र, स्थान-१. सूत्र-१० पृष्ठ : ४. २. स्थानांग-सूत्र, प्रथम-स्थान, सूत्र-२१४-२२८, पृष्ठ : १७. 159 DILA0 5585 SANELIGIPRIOR MAHARAN Marwadi Kamle Social AASpee se ASTER " ANILE ENERA
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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