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________________ उधक केवल • हीरा एक के उपरांत परिवार के की बहुत शाली यह र मंत्र की नकी सारी है। स्वर्ग , जिसकी करने के नंद प्राप्त ति और - अधिक जनों के किसी तंत्र का और ता के होता सिपद और मोक्कार-आराधना है, उसे वे अपनाते हैं । ऐसे सहृदय जिज्ञासु मानव समुदाय को समझाने हेतु ग्रंथकारों ने णमोक्कार के संबंध में विशाल कथा - साहित्य की रचना की । णमोक्कार मंत्र विलक्षण- चामत्कारिक है। जैन इतिहास में वर्णित कथानकों, घटनाक्रमों से यह प्रतीत होता है कि इस महामंत्र के प्रभाव से बड़े से बड़े संकट टल गए। वैसे कथानकों को पढ़कर सुधीजन मंत्र के आराधन की दिशा में प्रेरित होते हैं । आज का जगत् अर्थ प्रधान है। परिवार, समाज, व्यापार उद्योग, व्यवसाय, इन सबके मूल में वित्त या पूंजी है। उस केंद्र या धुरी पर जगत् के सारे कार्य संचालित होते हैं। इन विविध क्षेत्रों में कार्य करने वाले लोगों की दृष्टि मुख्य रूप में अर्थ पर जमी रहती है | इसलिए अर्थशास्त्र की दृष्टि से णमोक्कार मंत्र पर विचार किया जाना अप्रासंगिक नहीं है । जैसा विवेचन किया गया है, अल्पतम समय में कम से कम श्रम द्वारा अधिकतम लाभ या मुनाफा जिससे हो, उस कार्य को अर्थशास्त्र सर्वाधिक महत्त्व देता है । सांपत्तिक या वैभवमूलक दृष्टि से भी णमोक्कार मंत्र सबसे अधिक लाभकारी है क्योंकि एक व्यक्ति को समग्र जीवन में जो संपत्ति उपलब्ध होती है, जैसा प्रतिप्रादन किया गया णमोकार मंत्र के एक पद के केवल चार सैकेण्ड मात्र स्मरण से असंख्य गुणी देव ऋद्धि प्राप्त हो जाती है। उसके समक्ष आज के अरबपति और खरबपति धनिकों की कोई गिनती नहीं है। उनकी संपत्ति तो देव ऋद्धि के समक्ष तिल- मात्र, अणु मात्र भी नहीं है अतः अर्थशास्त्र की दृष्टि से भी णमोक्कार महामंत्र | सर्वाधिक महनीय एवं ग्राह्य है। उतना वैभव, लाभ जगत् में कोई भी व्यापार, उद्योग नहीं दे सकता । यदि आध्यात्मिक दृष्टि से विचार किया जाए तो यह लाभ सर्वथा नगण्य है। सबसे बड़ा लाभ | तो सिद्धत्व की प्राप्ति तथा मोक्ष वैभव की उपलब्धि है। जहाँ पहुँचने पर कोई भी प्राप्य अवशिष्ट नहीं रहता है। न्याय - तंत्र के संदर्भ में णमोक्कार मंत्र इस जगत् की व्यवस्था शासक और शसित के रूप में चलती है। विशाल जन समुदाय शासित होता है। उसे अनुशासन, नियम और विधि-विधान के अनुसार चलाया जाता है । वैसा न होने पर | व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो जाती है। समाज और राष्ट्र चल नहीं पाते । वे पुरुष, शासक पद पर आते हैं, जिन्हें जनता उस कार्य हेतु निर्वाचित करती है। यह वर्तमानकालीन परंपरा है। 1 वीतराग के शासन में तो कोई संशय का स्थान नहीं होता किंतु लौकिक व्यवस्था में यदि नीति और सेवा का स्थान आसक्ति, स्वार्थ और लालच ले ले तो शासन तंत्र विकृत होने लगता है। शासित 132
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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