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________________ सिध्दपद और णमोक्कार-आराधना । चाहे जैसा र धर्म-कार्य से सब पाप __ शोक, चिंता । पड़ती है। उपाय है। मोक्कार मंत्र । णमोक्कार रिहंताणं में सकता हैं। nce) समग्र में जघन्यने को, पंद्रह अ में जाता से है। राजनैतिक अर्थात मानव के उद्यम की यही सफलता है कि उसको कम से कम प्रयत्न या उद्यम करना पड़े और अधिक से अधिक फल प्राप्ति हो। उदाहरणार्थ- एक व्यक्ति दस हजार रुपये अर्जित करता है। दसरा व्यक्ति एक लाख रुपये अर्जित करता है। केवल इतना ही ज्ञात हो तो कहा जाता है कि दूसरा व्यक्ति अधिक अर्जित करता है किंतु यदि यह स्पष्टीकरण किया जाए कि पहला व्यक्ति प्रतिदिन दस हजार कमाता है और दूसरा व्यक्ति हर वर्ष एक लाख कमाता है तो जो व्यक्ति अधिक उपार्जन करता हुआ प्रतीत होता था, वह सूक्ष्म दृष्टि से देखने पर कम उपार्जन करता है। जो पहले कम उपार्जन करने बाला लगता था, वात्सव में वह अधिक उपार्जन करने वाला प्रतीत होगा। इस प्रकार अर्थशास्त्र का समय-मर्यादा (Time Limitation) के साथ संबंध है। एक दूसरा उदाहरण और भी है- एक व्यक्ति व्यापार में एक रुपया प्रतिशत मुनाफा कमाता है और दूसरा व्यक्ति सौ रुपया प्रतिशत मुनाफा कमाता है। इतना जानते ही तुरंत यह कहा जाता है कि पहले व्यक्ति की अपेक्षा दूसरा व्यक्ति ज्यादा कमाता है। | इसका इस प्रकार स्पष्टीकरण किया जाए- शत-प्रतिशत मुनाफा कमाने वाले व्यापारी ने दो रुपये किलो के भाव से दस किलो सब्जी खरीदी और उसे चार रुपये किलो के भाव से बेचा। इस प्रकार से, उसे शत-प्रतिशत लाभ हुआ। पहले व्यक्ति ने दस लाख रुपये के हीरे खरीदे, जिनका वजन दस ग्राम से भी कम है। उसने एक प्रतिशत मुनाफे के साथ उन हीरों को बेचा। अब जरा सोचें- इन दोनों व्यापारियों में एक प्रतिशत कमाने वाले व्यापारी से अनेक गुणा मुनाफा थोड़े से समय में प्राप्त कर लेता है। कम से कम मेहनत में अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करना यह अर्थशास्त्र का मूलभूत सिद्धांत है। णमोक्कार मंत्र की आराधना में अर्थशास्त्र के ये दोनों नियम साकार होते हैं। उसकी आराधना में सहज रूप में अल्प समय में विराट् एवं शाश्वत फल प्राप्त होता है। इस प्रकार अर्थशास्त्र के दृष्टिकोण से णमोक्कार मंत्र की आराधना की प्रक्रिया अनंतगुणा शाश्वत फल प्रदान करती है। वर्तमान जगत में सबसे अधिक धन कमाने वाले व्यक्ति की आमदनी प्रतिवर्ष बयालीस अरब है। यह मनुष्य यदि सौ वर्ष जीवित रहे तो उसकी आमदनी सौ गुना हो सकती है। इसकी तुलना में णमोक्कार के फल पर जरा विचार करें। इस महामंत्र की आराधना करने वाला व्यक्ति एक श्वासोच्छ्वास जितने समय में (जो लगभग चार सैकेण्ड होता है) णमो अरिहंताणं' पद का शुद्ध भाव से स्मरण करता है तो वह दो लाख पैंतालीस हजार पल्योपम पर्यंत देवलोक का सुख भोग सके, इतना पुण्य उपार्जित कर लेता है। परम उपकारी भगवान् महावीर द्वारा बताए गए इस महामंत्र का स्मरण सबसे अधिक लाभप्रद है। वर्तमान जगत् में अधिक से अधिक धन उपार्जित करने वाला मनुष्य अपने समग्र जीवन में जो [षण पहले ना रहा है, ह सिद्धांत 130
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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