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________________ | णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन सुसज्जित है। जिसमें राग, द्वेष और मोह का भाव नहीं रहता, उसे कोई भी पराजित नहीं कर सकता। धर्म-साम्राज्य अपराजेय है। इसके अधिष्ठाता, अधिनायक, सम्राट् या अध्यक्ष जो भी कहे जाएं, श्री अरिहंत तीर्थंकर देव हैं। तभी तो उन्हें “धम्मवर चाउरंत चक्कवट्टी" कहा गया है। अर्थात् चारों दिशाओं में व्याप्त उत्तम संयम-मूलक धर्म-साम्राज्य के वे चक्रवर्ती सम्राट हैं। उनका धर्मचक्र चारों दिशाओं में व्याप्त है। वे णमोक्कार-मंत्र के प्रथम अधिष्ठित हैं। विभिन्न राष्ट्रों में निर्वाचन होते हैं। जो दल विजयी होता है, उसकी ओर से राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री मनोनीत होते हैं। कुछ ही समय बाद ज्यों ही स्थितियाँ नए मोड़ लेती हैं, शासक बदल जाते हैं, उनका स्थान नए शासक ले लेते हैं। ये शासक तो सराग होते हैं। जहाँ रागात्मकता है, वहाँ लोभ, मोह तथा पक्षपात आदि होते हैं। फलत: राष्ट्र में भ्रष्टाचार व्याप्त होता है। जन समुदाय उद्विग्न और रुष्ट हो जाता है। शासनतंत्र पर अधिकार जमाए हुए लोग स्थान-च्युत हो जाते हैं। वापस सड़क पर आ जाते हैं। आज राजनीति की यही स्थिति है। धर्म-साम्राज्य के नायक श्री तीर्थंकर देव अपने पद से च्यूत नहीं होते क्योंकि वे वीतराग होते हैं। उनके धर्म-साम्राज्य में सदाचार, शिष्टाचार और पवित्राचार होता है क्योंकि किसी को न लोभ होता है, न ममत्व और न आसक्ति ही, तो फिर आचार में भ्रष्टता कैसे आ सकती है ? ___ लौकिक-शासनतंत्र में जो लोग उच्च पद पर चले जाते हैं, वे उसे छोड़ना नहीं चाहते हैं। उससे अवकाश नहीं चाहते। उन्हें पद से हटने को बाध्य किया जाता है। धर्म साम्राज्य के चक्रवर्ती अरिहंत देव जब अपना कार्य पूर्ण कर लेते हैं, चतुर्विध-धर्म-संघ को सदृढ़ बना देते हैं, तब अवशिष्ट कर्म-क्षय-रूप अपने सब कार्य पूर्ण कर वे सदा के लिये अवकाश ले लेते हैं, अर्थात् सिद्ध पद प्राप्त कर लेते हैं। ___ लौकिक-साम्राज्य, जनतंत्र, गणतंत्र आदि के अंतर्गत शासन-तंत्र में विभिन्न पदों पर जो आरूढ़ होते हैं, उनकी आज कैसी स्थिति हैं ? सब जानते हैं। उच्च अधिकारी प्रजा का धन येन-केन-प्रकारेण हड़प कर अपने घर भरते रहते हैं। आए दिन प्रगट होने वाली घटनाओं से यह विदित होता है किंतु धर्म-साम्राज्य के उच्च अधिकारी आचार्य, उपाध्याय हैं, जो प्राणीमात्र को सद्ज्ञान, सदाचार, विश्ववात्सल्य, मैत्री, प्रेम, समता आदि के पथ पर लाने का प्रयास करते हैं। कितना बड़ा आश्चर्य है कि लौकिक सत्ता के पदों पर बैठे हुए अधिकारियों के घरों में अन्यायार्जित धन के ढेर लगे हैं। ये धर्म-क्षेत्र के अधिकारी सर्वथा अकिंचन हैं, महान त्यागी हैं। केवल जीवन SARAM TECAT Somnaikia 127 FEMARHI
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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