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________________ S PBASTHAN ASMISHRA 500RANVEERNA DSAR । णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन HIRAINRAIGARBARIMASALAANE SaiRailwalaindiadiaoission m RRORRESSURAHEIR पुनश्च, अपूर्वकरण के योग से वह उस ग्रंथी को उच्छिन्न करने में उद्यत होता है। वह जीव अनंत पुद्गल-परावर्त करता हुआ इस स्थिति तक पहुँचता है। अर्थात् घटते-घटते वे पुद्गल-परावर्त अंतिम एक पुद्गल-परावर्त तक आ जाते हैं। अनंत का एक के रूप में यह न्यूनीकरण है, जिसके बाद वह जीव सम्यक्त्व प्राप्त करता है। ___ परिणामस्वरूप उत्तरोत्तर व्रतमय साधना-पथ पर आगे बढ़ते-बढ़ते एक ऐसी स्वर्णिम बेला आती है कि राग और द्वेष के बंधन टूट जाते हैं। जीव वीतराग भाव अपना लेता है। काम-क्रोध, मोह-माया आदि समस्त अरिवंद- शत्रु-समूह नष्ट हो जाते हैं और बीतराग-भाव स्वायत्त हो जाता है तथा साधक अरिहंत पद का अधिकारी हो जाता हैं। यह उच्च, तीव्र साधना अमोघ होती है। कभी निष्फल नहीं जाती। त्रयोदश गुणस्थानवी जीव चतुर्दश गुणस्थान में पहुँचकर सिद्धत्व का सर्वातिशायी, गौरवास्पद पद पा लेता है। णमोक्कार मंत्र की एक बहुत बड़ी विशेषता है कि वह गणना पर आश्रित गणित को भी निष्फल बना देती है। गणित का यह नियम है कि २ + २ = चार होता है। वह आठ तभी होगा, जब ४ + ४ की स्थिति आएगी। अर्थात् संख्यात्मक विकास संख्याओं के आधार पर टिका हुआ है। एक सीधा सौ नहीं बन सकता। बीच के अंकों को पार करके ही सौ की संख्या तक पहुँचना संभव है। णमोक्कार की साधना इससे विलक्षण और अद्भुत है। वहाँ कर्मों के कटने का या निर्जीर्ण होने का क्रम गणितीय गति से आगे नहीं बढ़ता। अर्थात् एक दिवसीय आराधना से अमुक परिमाण में कर्म कटते हैं, तो आगे उसी परिमाण में कर्म कटते जायेंगे। इस प्रकार कटते-कटते जब वे सर्वथा क्षीण होंगे, तब उनसे मुक्ति मिलेगी। ___ साधना में एक अन्य पद्धति काम करती है। आत्मा के परिणामों में जितनी शुद्धिमय उज्ज्वलता होगी, उतनी ही तीव्रता से कर्मों का क्षय होता जाएगा। यदि आत्म-परिणामों की विशुद्धता का प्रकर्ष उच्चातिउच्च होगा तो अनेक जन्मों में कटने वाले कर्म क्षण भर में कट जायेंगे। जीव अपने साध्य के सन्निकट पहुँचेगा और वह उज्ज्वल परिणामों की धारा उसे, उसका लक्ष्य प्राप्त करा देगी। गणित की गणनात्मक पद्धति द्वारा जिस सिद्धत्व को साधने में न जाने कितना काल लगता, कितने भवों में से गुजरना पड़ता, वह सब क्षण-साध्य हो जाता है। लौकिक-गणित की तो एक सीमा है, क्योंकि उसका आधार लौकिक गणना है किंतु आध्यात्मिक-गणित बहुत रहस्यपूर्ण और विलक्षण है। उसकी गृढ़ता को आत्म-द्रष्टा महापुरुष ही समझने में समर्थ होते हैं। णमोक्कार मंत्र विज्ञान सम्मत गणित पर तो शत-प्रतिशत सार्थक सिद्ध होता ही है किंतु उसके SMSINESS SARAMPARAN PRASHRA HOST 125
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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