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________________ TAITERMINAR णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन SARITRATHNAINA णमोक्कार में निश्चय दृष्टि से नव रस भरे हुए हैं किन्तु वे शुद्ध हैं। विकार का शमन करने वाला हैं और विकार शून्य पद प्राप्त कराने वाले हैं। शास्त्र में अनित्यादि बारह भावनाओं और मैत्री आदि चार भावनाओं का वर्णन किया गया है। वे शांत रस की विभाव-अनुभाव रूप हैं। ये भावनाएं वैराग्य तथा वात्सल्य-भाव का पोषण करती हैं। प्रथम छ: भावनाएं वैराग्य-रस का पोषण करती हैं तथा शुभ आम्रव-भावना, संवर-भावना और निर्जरा-भावना- धर्मरस का पोषण करती है। धर्म-भावना, लोक-स्वरूप-भावना तथा बोधि-दुर्लभभावना आत्मा के ज्ञान, दर्शन तथा चारित्र के गण को विकसित करती है। मैत्री आदि चार भावना वात्सल्य रस को विकसित करती हैं। विभिन्न रसों के साथ नवकार मंत्र की संक्षेप में इस प्रकार संगति की जा सकती है१. दुःखात्मक दृष्टि से यह संसार करुण-रस से परिपूर्ण है। २. पापात्मक दृष्टि से यह संसार रौद्र-रस से भरा हुआ है। ३. अज्ञान-दृष्टि से यह संसार भयानक-रस से युक्त है। ४. मोहात्मक दृष्टि से यह संसार वीभत्स और हास्य-स से परिपूर्ण है। ५. सजातीय दृष्टि से यह संसार स्नेह-रस से परिपूर्ण है। ६. विजातीय दष्टि से यह संसार वैराग्य-रस से आप्लावित है। ७. कर्म-दृष्टि से यह संसार अद्भुत-रस से युक्त है। ८. धर्म-दृष्टि से यह संसार वीर और वात्सल्य रस से पूर्ण है। ९. आत्म-दृष्टि से यह संसार समता-रस से संभृत है। १०. परमात्म-दष्टि से यह संसार भक्ति-रस से पूर्ण है। ११. पूर्ण-दृष्टि से यह संसार शांत-रस से आपूर्ण है। १२. व्यापक दृष्टि से समग्र रसों की समाप्ति शांत-रस में होती है। आचार्य अभिनवगुप्त ने 'अभिनव भारती' में शांत-रस के प्रसंग में लिखा है कि वही एकमात्र मूलरस है। इस संबंध में उनका निम्नांकित श्लोक प्रसिद्ध है - स्वं-स्वं निमित्तमासाद्य, शान्ताद् भाव: प्रवर्तते । पुननिर्मित्तापाये च, शान्त एवोपलीयते ।। | १. (क) त्रैलोक्य दीपक, पृष्ठ : ३७१-३७३. (ख) नवकार मीमांसा (ग) परमेष्ठी नमस्कार, पृष्ठ : ८० - ८२. 101 मा
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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