________________
णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन
ममता, आसक्ति, वासना, स्पृहा, माया आदि साधना में योगाभ्यास में विघ्न करते हैं। इसलिये ये साधक के एक प्रकार से शत्रु हैं। अरिहंत पद के ध्यान से साधक के ये शत्रु स्वतः नष्ट हो जाते हैं। - अरिहंत प्रभु का ध्यान योग में 'सालंबन-ध्यान' कहा जाता है। सालंबन का अर्थ- आलंबन सहित है। इस ध्यान में अरिहंत देव ध्येय के रूप में आलंबन होते हैं ।
सिद्धपद साधना की सफलता या सिद्धि का सूचक है । इस पद की आराधना और ध्यान से | साधक में असीम आत्मबल का जागरण होता है । ऊर्जा प्रस्फुटित होती है । यदि वह उसको संभालकर साधना में, योगाभ्यास में निरत रहता है तो एक दिन वह अवश्य ही सिद्धि को प्राप्त कर लेता है । यह अनालंबन ध्यान है। यहाँ प्रतीक के रूप में किसी मूर्त आलंबन का सहारा नहीं लिया जाता।
सत्-चित्त्-आनंदमय, अमूर्त, अभौतिक भाव ही यहाँ ध्यान का विषय होता है। यह ध्यान की | उच्च स्थिति है । जैन- परिभाषा में वहाँ शुक्ल - ध्यान अधिगत होता है । 'शुक्ल' शब्द ध्यान की | सर्वाधिक निर्मलता का द्योतक है ।
योग के आठों अंगों की सिद्धि के पश्चात् जो कैवल्यावस्था प्राप्त होती है, णमोक्कार मंत्र आत्मा की वैसी परम शुद्धावस्था को बहुत ही सरलता से प्राप्त करने का एक सफल सिद्ध (approved) मार्ग है । इसमें अष्टांग योग सहज रूप में सिद्ध हो जाता है। योग आठों अंगों के माध्यम से जो प्राप्त कराता है, णमोक्कार मंत्र के स्मरण, जप, आराधन और ध्यान से वह शीघ्र सिद्ध हो जाता है । णमोक्कार अध्यात्म योग का बीजमंत्र है ।
णमोक्कार मंत्र में समग्र रसों का समावेश
काव्य - शास्त्र में काव्य के स्वरूप तथा अंगोपांगों आदि का विशद विवेचन किया गया है। | विश्वनाथ कविराज ने साहित्य-दर्पण में काव्य का लक्षण बताते हुए लिखा है- 'वाक्यं रसात्मक काव्यम्" - रस जिसकी आत्मा है, ऐसा वाक्य या ऐसी रचना को 'काव्य' कहा जाता है ।
साहित्य-शास्त्र में काव्य-पुरुष की कल्पना की गई है। बताया गया कि शब्द और अर्थ काव्य का शरीर है। रस काव्य की आत्मा है। पुरुष में जिस प्रकार औदार्य, शौर्य, सौजन्य आदि गुण होते हैं, उसी प्रकार काव्य में प्रासाद, माधुर्य तथा ओज आदि गुण होते हैं । जिस प्रकार मानव कटक, कुंडल आदि आभूषण धारण करता है, उसी प्रकार काव्य में उपमा, अनुप्रास, रूपक आदि अलंकार होते हैं । | जिस प्रकार मनुष्य में काणत्व, खंजत्व, कुब्जत्व, पंगुत्व आदि दोष होते हैं, उसी प्रकार काव्य मे
कटुत्व,
१. साहित्य दर्पण परिच्छेद १ सूत्र ३.
-
99