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________________ णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन अपवाद से रहित होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि एकादशी, चतुर्दशी आदि तिथियों का विकल्प स्वीकार नहीं किया जाता, तब वह काल के अपवाद से रहित होता है। यहाँ प्रयुक्त समय शब्द काल का सूचक नहीं है किंतु विशेष नियम या प्रयोजन-सिद्धि का सूचक है। अर्थात् जब साधक किसी भी विशेष प्रयोजन का अपवाद न रखता हुआ यम का पालन करता है, तब वह यम समय के अपवाद से रहित होता है। यमों का अपवाद रहित पालन महाव्रत कहा जाता है। योग-दर्शन में प्रयुक्त महाव्रत शब्द बहुत महत्त्वपूर्ण है। जैन धर्म में भी इसी शब्द का प्रयोग हुआ है। वहाँ मन, वचन, काय इन तीन योंगों तथा कृत, कारित, अनुमोदितै- तीन करणों द्वारा व्रत-पालन का विधान है। अर्थात् महाव्रत स्वीकार करने वाले के लिये किसी भी प्रकार का अपवाद नहीं होता। वह समग्रतया इनका पालन करता है। ___ णमोक्कार मंत्र में पाँचवें पद में साध है। साधु उन्हें कहा जाता है- जो निरपवाद रूप में महाव्रतों का पालन करते हैं। जब तक एक साधक ऐसी भूमिका अपनाने में अपने को सक्षम नहीं समझता, तब तक वह अपनी क्षमता के अनुरूप विभिन्न अपवादों के साथ विभिन्न व्रतों का पालन करता है- वे अणुव्रत कहलाते हैं। वे एक प्रकार से यमों का ही रूप लिये हुए हैं। अणुव्रती साधक के मन में सदा यह भावना बनी रहती है कि उसे कब वह सौभाग्य प्राप्त होगा, जब वह जीवन को महाव्रतमय आराधना के साथ जोड़ सकेगा। श्रमणोपासक या अणुव्रती साधक के जीवन में यह भावना रहती है- ‘कयाणमहं मुंडा, भवित्ता पब्वइस्सामि'- मैं संयमी जीवन कब स्वीकार कर पाऊंगा, वैसा शुभ अवसर मुझे कब मिलेगा। उत्कंठा, उत्साहशीलता एवं अभिरूचि जब तीव्र होती है, तब भावना नि:संदेह फलवती एवं सिद्ध होती है। एक समय आता है कि वह अपवादों को छोड़कर अणव्रतों या यमों से महाव्रतों की | दिशा में प्रयाण करता है। णमोक्कार मंत्र के पाँचवें पद का अधिकारी बन जाता है। जीवन एक नया मोड़ ले लेता है। साधक व्रत-पालन में सावधान रहता हुआ, आध्यात्मिक उन्नति के पथ पर अग्रसर रहता है। २. नियम यम के बाद योग का दूसरा अंग नियम है। शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, तथा परमात्मोपासनाये पाँच नियम हैं। | णमोक्कार के पंचम पद के अधिकारी साधु के जीवन के साथ यदि इन नियमों को जोड़ा जाए तो ये बड़े संगत प्रतीत होते हैं। शौच का अर्थ बाह्य और आंतरिक पवित्रता है। आंतरिक पवित्रता १. नमो लोए सव्वसाहूणं, पृष्ठ : ५० २. योग-सूत्र, साधनपाद, सूत्र-३२. S
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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