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________________ इस ग्रंथ के उपसंहार में सार-संक्षेप, निष्कर्ष एवं उपलब्धि की चर्चा की गई है। भौतिक सुखों की मृगमरीचिका में विभ्रांत आज के युग में, जन-जन में आध्यात्मिकता, सदाचार, नीति, समता और मैत्री आदि उदात्त भावों को उजागर करने में सिद्धत्व के आदर्शों का परिशीलन उपयोगी सिद्ध हो सकता है, इस पर भी सविमर्श विचार किया गया है। इस अनुसंधान कार्य में मेरी कनिष्ठा गुरुभगिनी, विनयान्विता साध्वी श्री चारित्रशीलाजी की जो निरंतर सेवाएँ रहीं वे सर्वथा स्तुत्य हैं । वे भी यद्यपि अपने पी-एच.डी. के शोधकार्य में संलग्न हैं, किंतु अपने कार्य को गौण कर स्वच्छ प्रति (प्रेस कॉपी) तैयार करने आदि में सतत सहयोगिनी रही । यह उनकी सहृदयता, हमारी पारस्परिक तन्मयता एवं एकरूपता का परिचायक है । साध्वी श्री विवेकशीलाजी, साध्वी श्री पुण्यशीलाजी और साध्वी श्री भक्तिशीलाजी का भी इस कार्य को पूर्ण करने में सहयोग रहा । इस शोध ग्रंथ के प्रकाशन का चेन्नई में कार्यक्रम बना। इसे आगे बढाने में श्री सुरेंद्रभाई. एम. मेहता. श्री एस. एस. जैन संघ, अयनावरम् तथा चेन्नई महानगर के तत्त्वानुरागी उपासक वृंद का जो सौहार्दपूर्ण प्रयत्न रहा, वह उनकी आध्यात्मिक अभिरुचि का सूचक है। इस ग्रंथ से जिज्ञासु, मुमुक्षु, अध्ययनार्थी लाभान्वित हों, यही मेरी अंतर्भावना है। दिनांक २३-८-२०००, (कृष्ण जन्माष्टमी ) (5) OF परम् 12 - साध्वी डॉ. धर्मशीला - अपनावरम्, चेन्नई-२३.
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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