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________________ सिद्धपद और णमोक्कार-आराधना लिश, होता । इस गक्ति वकी आदि तएव जला ; है। वेनष्ट पूर्वक ने से त्र से प्राप्ति जिस अज्ञान, पाप और संक्लेश के अंधकार को न सूर्य, न चंद्र, न दीपक दूर कर सकता है, उस सघन | अंधकार को यह मंत्र नष्ट कर देता है।' परमेश्वरोपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान एवं गुरुभक्ति के साथ प्रतिदिन प्रात:काल और सायंकाल भक्ति-भाव पूर्वक जो इसका जप करता है, वह इतना पुण्य-बंध करता है, जिसके परिणामस्वरूप चक्रवर्ती, अहमिन्द्र आदि के पदों को प्राप्त करने की योग्यता उसमें उत्पन्न हो जाती है। अपने पुण्यों के अतिशय के कारण वह तीर्थंकर-पद भी प्राप्त कर सकता है। मंत्र का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य जीव में व्याप्त अनादिकालीन मूर्छा को तोड़ना है। णमोक्कार मंत्र मर्छा को भग्न करता है तथा जीव को अनासक्त बनाता है। यह एक बड़ा विलक्षण और अद्भुत मंत्र है। इसमें तंत्र, मंत्र, यंत्र, दर्शन, अध्यात्म, चिकित्सा, मनोविज्ञान, तर्क, ध्वनि-विज्ञान, भाषा-विज्ञान, लिपि-विज्ञान, तथा ज्योतिष आदि अनेक विषय गर्भित हैं। यह श्रुतज्ञान का सार और नवनीत है। यह शक्ति-जागरण का महामंत्र है। इससे सुषुप्त शक्तियाँ जागृत होती हैं, संस्फुरित होती हैं। यह शब्द को अशब्द की ओर ले जाता है। यह अंतर्मुख होने की एक सूक्ष्म प्रक्रिया है। णमोक्कार मंत्र के जप द्वारा एक व्यक्ति उच्च कोटि की महान् उत्कृष्ट आत्माओं से जुड़ता है, जिन्होंने सैंकड़ों, हजारों वर्ष पूर्व इसका जप किया था, साधना की थी। णमोक्कार में जो पाँच पद हैं उनके क्रमश: श्वेत्त, रक्त, पीत, नील और श्याम- ये पांच वर्णरंग माने गए हैं। ध्यान में श्वास-प्रक्रिया के साथ इनका विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है। णमोक्कार के अक्षरों के ध्यान से हम अक्षर-क्षय या नाश रहित बनने की दिशा में अग्रसर हो सकते हैं। णमोक्कार मंत्र एक सार्वभौम और संप्रदायातीत मंत्र है। इस महामंत्र में साधक जितनी यात्रा करना चाहे, करें, जप, स्मरण, मनन के रूप में समुद्यत रहना चाहे, रहे। यह एक प्रकार की आध्यात्मिक तीर्थ-यात्रा है। इसमें व्यक्ति जितनी एकाग्रता से अग्रसर होता है, वह अध्यात्म-ज्योति की अनुभूति करता है। विभिन्न चिंतकों एवं लेखकों ने णमोक्कार मंत्र के उत्कर्ष के सन्दर्भ में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण उद्गार व्यक्त किए हैं। उनमें से कतिपय यहाँ उपस्थापित हैं : "जिस प्रकार घन की रक्षा के लिए तिजौरी, शरीर की रक्षा के लिए वस्त्र आदि का महत्त्व है, उसी प्रकार मन की रक्षा के लिए, जिसका मानव-देह में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है, महामंत्र अत्यन्त आवश्यक है।" ने का : मंत्र तथा क्ष के हए। १. नमस्कार माहात्म्य, (डॉ. नेमीचन्द शास्त्री), अध्याय-६, श्लोक-२३, २४. २. चुंटेलुं चिंतन, पृष्ठ : ३. 70
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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