________________
-
मैं जैन स्वयं निरूप हूं
मैं
खुद में खुद से खुदा ही हूं मैं जैन स्वयं जिनरूप हूं
इन्द्रियों के तो विषय अनंत और
एक एक विषय ही खुद में खुद है मैं
जैन जिनरूप हूं
एक समय में तो सब ही हैं
एक समय में सभी बदलते भी हैं मैं
शरीर तो खुद ही खुद का है
शरीर खुद की हिफाजत करता है मैं जैन स्वयं जिनरूप हूं
जैन स्वयं जिनरूप हूं
मन-बुद्धि में विकल्प ही होते हैं
विकल्प भी खुद ही खुद से ही हैं मैं जैन स्वयं जिनरूप हूं
जैन स्वयं जिनरूप हूं
बदलता वह भी तो खुद ही है जब
मैं तो एक नित्य सम्पूर्ण ही हूं मैं जैन स्वयं जिनरूप हूं
आओ सुनो, देखो और विचारो सभी
तो खुद ही खुद में ही ठहरा हुआ मैं जैन स्वयं जिनरूप हूं
ज्ञानस्वरूप मैं ही हूं सब जानता
मैं स्वयं में ही आनंद शांतिमय हूं मैं जैन स्वयं जिनरूप हूं
सब हुए ज्ञात, पर किसको ? मुझे ही मैंने
तो मेरे ही आनंद-शांति को ही जाना मैं जैन स्वयं जिनरूप हूं.
94
|