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जीव जाग रे जाग
जीव जाग रे जाग, ऐसी है तुझ में आग जल जाएं सारे ही शुभाशुभ राग, जाग रे जाग जीव जाग रे जाग, ऐसी है तुझ में आग रहे उज्जवलित सदा ही कभी न हो शाम, जीव जाग रे जाग.
जीव जाग रे जाग ऐसे हैं तुझ में प्राण तू खिल उठे जैसे सहस्त्र कलियों वाला कमल, जीव जाग रे जाग.
जीव जाग रे जाग ऐसा है तेरा पुरुषार्थ थकना नहीं तू तो सदा रहे स्फूर्तिमान, जीव जाग रे जाग.
जीव जाग रे जाग तुझ में है ऐसी आग
भस्म हों सारे बंधन, तू रहे सदा मुक्त, जीव जाग रे जाग. जीव जाग रे जाग तुझ में है ऐसी आग शरीर के होते कर दे भस्म, शरीर का वेदन, जीव जाग रे जाग.
जीव जाग रे जाग ऐसी है तुझ में आग
तू सदा रहे निराबाध, सुखी रहे अबाध, जीव जाग रे जाग. जीव जाग रे जाग तुझ में है ऐसी आग मैं मर गया, रह गया ज्ञानानंद, जीव जाग रे जाग.
बहेनश्री का "स्वानुभूतिदर्शन'' प्रश्न - ७५ : गहन संस्कार किन्हें कहा जाता है ?