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व्यवहार मेरा क्या, और क्या मेरा निश्चय, मेरा उपादान क्या है और क्या हैं मेरे निमित्त, मेरे ही परिणमन हो रहा एक क्रम से और मेरे ही गुण अक्रम से यही मेरे गुरुदेव की वाणी है
मेरा सच्चा तप स्वाध्याय से स्वयं को जानना फिर इसी में ही श्रद्धा कर सारे व्यवहार से मुक्त होकर एकाग्र होना स्वयं में, लीन होना बताया यही मेरे गुरुदेव की वाणी है
शरीर के व्रत तपों को भी आत्म लक्ष से समझाया है, शरीर हो तो संयम हेतु बताया है, इन्द्रियों के विषयों और मन बुद्धि के विकल्पों से भिन्न मुझे बताया यही मेरे गुरुदेव की वाणी है
पंचक में भरत क्षेत्र के गुजरात में काठियावाडी भाषा में ही प्राकृत और संस्कृत शास्त्रों को खुद अनुभव कर, समझ कर हमें सरलता से समझाया यही मेरे गुरुदेव की वाणी है
मैं गुरुदेव को मिली नहीं मैंने तो मेरे गुरु की वाणी ही जानी है, मानी है मैं इस वाणी में रमणी स्वयं को भी जान, मान पाई हूं, उपकारी हूं यही मेरे गुरुदेव की वाणी है
मेरे लिये मंगल है, मुझे पूज्य है मुझे सुनने, पढ़ने, विचारने, मंथन करने के लिये
भी गुरुदेव की वाणी ही है, इस वाणी का ही झंकार है, गीत है, सुर है, ताल है, भक्ति है यही मेरे गुरुदेव की वाणी है
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