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गुरुदेव की वाणी
पके हुए चावल को मुलायम कर के, निचोड़ कर के खिलाती है मां तब बच्चा खाकर बढ़ता है, फलता है इसी प्रकार गुरुदेव ने आचार्यों के कथन को मुलायम कर, निचोड़ कर, करुणा भाव से खिलाया है मुझे यही मेरे गुरुदेव की वाणी है
नट नाटक के भजे हुए पात्रों को स्वयं का नहीं मानता, नहीं बताता वैसे ही गुरुदेव ने स्वयं के शरीर का परिचय न देकर प्रभु परमात्मा मेरा आत्मा का ही सर्वथा ९००० कहो या अनगिनित बार परिचय दिया यही मेरे गुरुदेव की वाणी है
मैं मुझे रागी / द्वेषी, मनुष्य मानता रहा, गुरुदेव ने ही मुझ में ही परमात्मा स्वरूप देखा है, मुझे भी बताया, समझाया है, और गाय यही मेरे गुरुदेव की वाणी है
छह द्रव्यों का ज्ञान कराया और मेरे संसार का भी ज्ञान कराया, पर मैं इनसे भिन्न, स्वयं में ही पूर्ण, ज्ञानानंद मैं ही एक अकेला हूं बताया यही मेरे गुरुदेव की वाणी है
इस अनंत संसार में मेरे ही, एक ही सम्यक् एकांत को बताया
डूबूं और तैरता पार करूं इस भव सागर को यही बताया यही मेरे गुरुदेव की वाणी है
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