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मेरी निधियों को सम्पूर्ण रीति से समझाने वाले हैं गुरुदेव, मैं ही अब जान जाऊं यह तो मेरे ही लगन, रूचि, पुरुषार्थ पर ही है, और सबसे महत्व की बात बताउं, न छोड़ गुरुदेव की आज्ञा ही मैं पाऊं मेरा सुख.
मैंने गुरुदेव को इतना ही जाना जितना स्वयं के ज्ञान को ही जान पाया मैंने गुरुदेव को इतना ही जाना जितने मेरे हठाग्रहों, मताग्रहों को छोड़ पाया मैंने गुरुदेव को इतना ही जाना जितनी मेरे ज्ञान में अशुद्धि दूर कर पाया.
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