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________________ गुरुदेव में सत का ही पूरा आधार था सत की ही निर्भयता, स्पष्टता, वात्सल्य भाव से भरपूर, सरल, सहज ही जीवन था उनकी भाषा कोई भी विरोधाभास से रहित रसीली है यही मेरे गुरुदेव की वाणी है अपूर्व, अलौकिक, वाणी का प्रवाह है, गुरुदेव कहते वाणी भले कैसी भी हो परन्तु विकल्प ही है, मैं वाणी में नहीं, वाणी मुझ में नहीं है फिर भी शिष्यों का सर्वस्व है यही मेरे गुरुदेव की वाणी है गुरुदेव की वाणी ही जैसे मेरे स्वरूप का दर्पण है, मेरे सत स्वरूप का ज्ञान है सत स्वरूप की श्रद्धा का, चारित्र का वर्णन है, कुछ भी कहा जाय इस वाणी को यही मेरे गुरुदेव की वाणी है ऐसा लगता है, कि गुरुदेव ने तो कुन्दकुन्द, अमृतचन्द्र और जयसेन आचार्य जैसे इस काल के महान आचार्यों के भावों को खोल खोल समझाया है, लेकिन मेरे स्वभाव को ही बताया है यही मेरे गुरुदेव की वाणी है मेरे गुरु ने तो स्वयं में ही, स्वयं से ही पूर्ण सत स्वरूप को जान, मान, मुझे मेरे ही अतीन्द्रिय आनंद की अनुभूति के लिये मेरी ही भाषा शैली में मुझे समझाया है यही मेरे गुरुदेव की वाणी है मेरे गुरुदेव के एक एक शब्द में, एक एक रणकार में आगमों के भाव भरे हैं मुझे मेरे गुरु ने ऐसे समस्त आगमों के भाव ही मुझ में समझाये हैं बताये हैं यही मेरे गुरुदेव की वाणी है
SR No.009270
Book TitleSurakshit Khatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Maru
PublisherHansraj C Maru
Publication Year2014
Total Pages219
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationBook_Gujarati, Book_Devnagari, & Book_English
File Size28 MB
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