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________________ - कौन बोले ? कौन सुने? मैं बोल नहीं सकता, तू सुन नहीं सकता तू बोल नहीं सकता, मैं सुन नहीं सकता यह जैन दर्शन का मूल सत है इसे जाने माने बगैरह मैं कभी जैन बन नहीं सकता. क्या जिनवाणी नहीं ? गुरु उपदेश दे नहीं सकता ? क्या मैं शिष्य नहीं ? जिनवाणी सुन नहीं सकता ? सभी का होना है, यही तो संसार भी है परन्तु मुझ परिपूर्ण चैतन्य भगवान में हो नहीं सकता. भाषा वर्गणा है पुद्गल, चैतन्य कर नहीं सकता मैं जैन हूं, जिन स्वरूप मेरा, कैसे बोलूँ और सुनूं बोलकर सुनकर रागी द्वेषी मैं हो नहीं सकता "मैं" जाननहार सभी को "मैं" ही जान अवश्य सकता. किसने कहा मैं बोलकर, सुनकर रागी हो सकता अच्छा लगाकर हंस-रो सुखी-दुखी हो नहीं सकता क्रोधी, लोभी, भयभीत, शंकित भी हो नहीं सकता "मैं" जाननहार सभी भावों को, हैं पराये जान सकता. 79
SR No.009270
Book TitleSurakshit Khatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Maru
PublisherHansraj C Maru
Publication Year2014
Total Pages219
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationBook_Gujarati, Book_Devnagari, & Book_English
File Size28 MB
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