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मैं ही यह सब जान रहा, मैं कर्ता नहीं मैं अकर्ता कर ही नहीं सकता इसीलिये मैं पूण्य-पाप में बंधता नहीं ज्ञाता ही हूं जितना कर्तापने से विभक्त, उतना ही स्व में एकत्व
यही स्व में एकत्व मेरी शुद्धि भी है और शुद्धि में वृद्धि भी है और यही मेरी मुक्ति भी मैं इसी प्रकार पूर्ण अकर्ता बनकर ही मेरा स्वयं का पूर्ण मुक्त स्वरूपमय ही हो जाता हूं.
क्रिया का करना न करना मेरे हाथ में नहीं परन्तु मैं कोई भी क्रिया का कर्ता नहीं पूर्णतया निष्क्रिय स्वयं को ही आनंद-शांतिमय पूर्ण ज्ञान को ही वेदता स्वयं ज्ञाता द्रष्टा ही हूं
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