________________
कुछ न कुछ करना
कुछ न कुछ करने का भाव है, यह क्या है? कुछ न कुछ किया तो उसीके दो भाग हो गये शुभाशुभ भाव ही कुछ न कुछ करने के भाव हैं मैं स्वयं निष्क्रिय, पूर्ण, अपरिणामी, ध्रुव हूं.
मैं मेरी ही पूर्ण निर्मल दशा में परिणमता हूं तब मैं कुछ भी करने के भाव से ही रहित हूं मैं पूर्ण ज्ञाता-द्रष्टा मुझ ज्ञानस्वरूप को ही एक अभेद को ही वेदता लोकाकाश का ज्ञाता हूं,
आज भी कुछ न कुछ करने का भाव ही तो मेरी एक समय की योग्यता कहो, कहो कर्म फल चेतना यह मुझसे बाहर हो रहा है, मैं इस भाव का कर्ता नहीं मात्र ज्ञाता हूं, इसीलिये भोगता भी तो नहीं.
मैं शुद्ध, निर्मल, अकर्ता, ज्ञायक भाव ही हूं मुझ में होते, कुछ न कुछ करने और उसमें शुभाशुभ क्रिया भी होते, मैं ही जानता हूं यह सब हो अवश्य रहा है, हो ही रहा है.