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एक जीव ही अलौकिक, अनुपम, चमत्कार उसके कहलाते द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, चार पूर्ण मुक्त न बंधा किसीसे स्वाधीन प्रकार परिपूर्ण, खुद ही खुद से खुद का ही आधार.
एक जीव ही परिणमता विविध प्रकार, विविध प्रकार जीव ही ज्ञाता-द्रष्टा, जाने सारे ही प्रकार
सदैव मुक्त रहकर ही बंधता विविध प्रकार ध्रुव, अखंड, अपरिणामी ही है आधार.
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