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मेरा धर्म मुझ अंतर में है और मैं हूं आत्म स्वरूप
यही निज स्वरूप को ही पाने करता हूं मैं क्षमा सभीसे प्रभु ऐसी ही दृष्टी देना जिससे देखूं मैं मुझको पूर्ण और न देखूं खामियां मैं किसी भी जीव में, कभी भी ऐसी ही क्षमा भाव हो पैदा अंतर में, पाऊं पूर्ण वीतराग रूप.
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