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कैसी इच्छा?
मैं खुद ही सम्पूर्ण हूं मुझे कैसी इच्छा? इच्छा दुःख का कारण है, मुझे भिखारी ही बनाती है मैं इच्छा रहित हूं यही मेरा विश्वास है मैं निष्क्रिय हूं, शरीर की क्रिया मैं करता ही नहीं दिन रात यह राग द्वेष का बुलावा है कुछ न कुछ क्रिया के लिये, मुझे कुछ भी करना ही नहीं
इन्द्रियों में,मेरे ज्ञान का कोई व्यापार ही नहीं मेरा ज्ञान, मुझ सत स्वरूप में ही ठहरा है अब वहां से बाहर आना नहीं, कोई सवाल नहीं कोई जवाब भी देना नहीं, समाधान ही है मैं खुद ही सम्पूर्ण हूं मुझे कैसी इच्छा?
अंतर में, मुझ स्वरूप में ही रहना है, ठहरना है इस दुनिया में रहना, शरीर की क्रिया करना तो संयम के लिये ही है सब मुझसे बाहर ही है अंतर ही आनंद शांति मय है गहन है मैं खुद ही सम्पूर्ण हूं मुझे कैसी इच्छा?
“ધ્રુવધામના-ધ્યેયના-ધ્યાનની ધખતી ધૂણી ધગશ ને ધીરજથી ધખાવવી તે ધર્મનો ધારક ધર્મી ધન્ય છે.” પૂજય ગુરુદેવશ્રીએ આપેલો મંત્ર
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