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पूज्य गुरुदेवकी आवाज शेर जैसी बुलंद और सदा ही घोषित पुरुष त्रिकाल एक महा सत्ता, पूर्ण सत, एक ज्ञायक प्रभु इसकी प्रत्येक समय की अवस्थायें भले ही पुरुष जैसी ही अथवा भिन्न. पुरुष तो पुरुष और अवस्थायें, अवस्थायें ही.
कहानियां अनादि से सुनता, सुनाता आया हूं, इन कहानियों के अनंत भावों में ही डूब यह करूं, ऐसा करूं, ऐसा बनूं, जीता रहा हूं आकुल, व्याकुल दुखी भी तो खूब ही हुआ हूं. पूज्य गुरुदेव ने ही मेरा पुरुष मुझमें ही, अभी ही बता, मुझे पूर्ण बता, मुझे बताया है.
गुरुदेव ने ही कहा, तू तो खुद ही एक त्रिकाल पूर्ण सत है, तू तो बाहर की इन कहानियों को छोड़ स्वयं की महासत्ता को ही देख स्वयं पूर्ण कृतकृत्य फिर कैसे बने यह और वह, आकुल-व्याकुल अनादि का भुला आये घर. जाने, माने, बन भी जाये ज्ञानानंद.
यही मेरी भी एक कहानी है, मेरा भी एक फसाना है, मुझे ही कभी कभी विश्वास न आये कैसे तो बन गई यह कहानी है गुरुदेव को सुन पाना, समझ पाना ही इस दुनिया का सबसे बड़े से बड़ा मेरा सौभाग्य है, मेरा ही मुझमें ही पुरुष ही है.
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