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कर्ता कर्म
कर्ता-कर्म, ये मेरे कर्म और मैं इनका कर्ता यह क्या है? क्या जो क्रियायें हो रही हैं उनको समझाने के लिये ही लिखा गया है?
क्रियायें तो संसार में छह द्रव्य खुद खुद की ही
खुद ही कर रहे हैं इसीलिए जिनवाणी माँ ने किसी को भी किसी का कर्ता बताया ही नहीं.
छह द्रव्य पूर्ण भी हैं, स्वतंत्र भी हैं, संयोग ही जरुर नजरों में आता है. साथ रहते हैं इसीलिए क्या उनको एक दूजे का कर्ता कर्म बना दिया?
कर्ता-कर्म क्या मेरा भाव है? अज्ञान है, मिथ्यात्व है मैं मेरे घरबार, शरीर, मनबुद्धि, विवेक का कर्ता नहीं मैं ही खाता, पीता, पढ़ता, समझता, मानवी नहीं
यही जिनवाणी कह रही है, मैं तो स्वयं ही जीता जागता जाननहार ही हूं. मुझे तो हर समय ज्ञान ही हो रहा है न सांस का लेना, खाना, पीना, पढ़ना, समझना हो रहा है.
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