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कई धर्म
महावीर का ज्ञान एक रूप ही था महावीर एक धर्म, एक पूज्य ही थे ५०० वर्षों में भरत क्षेत्र में यह एक ज्ञान एक धर्म एक ज्ञानानंद के कई रूप प्रगट हो ही गये!
गुरुदेव का भी ज्ञान एक रूप विरोधाभास रहित ही सदैव था उनकी वाणी में आज भी एक ही है अब ३५ वर्षों में तो गुरुदेव के एक ज्ञान स्वरूप के ही कई रूप प्रगट हैं.
मैं जीव तो सदैव ही एक ही हूं अभेद, अखंड, निर्मल एक रूप अनादि का और वर्तमान का पागलपन ही मुझे अनंत रूप देता है और मैं भी मेरे ज्ञान में ही अनंत शुभाशुभ रूप धारण कर बैठता हूं
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