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उपकारी सदा
मैं उपकारी तो सदैव ही हूं, हमेशा से सभी की
लेकिन अणु मात्र भी कभी भी किसी की हो न सकी मां ने जन्म दिया तो बड़ा होने के लिये ही और फिर मां से अलग ही होने के लिये, फिर भी मैं रही उपकारी.
इस शरीर को खान-पान मिला, स्वस्थता भी, यौवन भी जग की सुविधायें भी मिली पर जब शरीर ही मेरा नहीं तो जग में तो रही पली अलग ही होने के लिये, फिर भी रही उपकारी.
देव गुरु शास्त्र मिले, उन्हीं से तो ज्ञान भी मिला, संग किया वे ही मेरे पूज्य, उन्हीं का है सहारा मुझे, फिर निग्रंथ गुरु ने ही कहा छोड़ मुझे पहचान स्वयं को, तू है अलग ही,फिर भी रही उपकारी.
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