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इच्छायें
इच्छाओं का होना है, करना तो नहीं, इच्छायें होती हैं, फिर भी कभी कभार पूरी हो जाती हैं, या अधूरी रह जाती हैं, इन सभी का अनुभव भी है, वेदन भी है.
पर मैं तो अनिच्छुक ही हूं पूर्ण ही हूं, मुझ में इच्छायें ही नहीं तो फिर क्या हो पूरा क्या रहे अधूरा! इस पूर्णता का भी अनुभव है, वेदन भी है, आनंद, शांतिमय, स्थिर, वज्र, गहरा मैं ऐसा पूर्ण हूं इच्छायें मनोकामनाएं कुछ भी मुझ में नहीं, मुझ से बाहर हैं, मेरे ज्ञान में पर पदार्थ जैसी ही हैं.
इसीलिये मुझे आकुलता, व्याकुलता नहीं, राग, द्वेष नहीं, ख़ुशी दुःख भी नहीं वीतरागता, आनंद, शांतिमय पूर्ण है, यही तो मेरा जीव है, जीना है, मैं हूं.
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