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मैं ज्ञान हूं, ज्ञान में ही रहकर सभी को हूं जानता मैं ज्ञान हूं, कभी भी किसीका न बनकर ही जानता अब ठहरने का स्थान पाया निज स्वरूप मैंने पाया भटकना ही दुखरूप पाया ठहरने में आनंद पाया.
मैं ज्ञान हूं, ज्ञान में ही रहकर सभी को हूं जानता मैं ज्ञान हूं, कभी भी किसीका न बनकर ही जानता गुरु कृपा से पाया, जिनवाणी ने ही तो है बताया देख स्वयं में ही, स्वयं से, तू ही है परिपूर्ण बताया.
मैं ज्ञान हूं, ज्ञान में ही रहकर सभी को हूं जानता मैं ज्ञान हूं, कभी भी किसीका न बनकर ही जानता गुरुदेव की और जिनवाणी मां की मैं उपकारी सदाय उन्हींने है मुझे अनंत सुख को मुझ में ही है बताया.
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