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मैं जानू
मैं ज्ञान हूं, ज्ञान में ही रहकर सभी को हूं जानता मैं ज्ञान हूं, कभी भी किसीका न बनकर ही जानता घरबार जाना, अमीरी गरीबी भी बहुत है जानी इस शरीर के सारे संबंधों को भी तो जान लिया.
मैं ज्ञान हूं, ज्ञान में ही रहकर सभी को हूं जानता मैं ज्ञान हूं, कभी भी किसी का न बनकर ही जानता शरीर भी तो बचपन से हुआ जवान और फिर बूढ़ा निरोगी उल्लास से भरपूर जाना और रोगी भी जाना.
मैं ज्ञान हूं, ज्ञान में ही रहकर सभी को हूं जानता मैं ज्ञान हूं, कभी भी किसीका न बनकर ही जानता हर समय होते इन शुभाशुभ भावों को भी जाना बदलते रहते सदा, नचाते मुझे यह भी तो जाना.
मैं ज्ञान हूं, ज्ञान में ही रहकर सभी को हूं जानता मैं ज्ञान हूं, कभी भी किसीका न बनकर ही जानता इन सबको छोड़, कहीं भी न रुक जब मैंने इस जानने वाले को जाना तब मैं अचम्भे से वहीं रुक ही गया.
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