________________
मृत्यु में मुक्ति नहीं
मुझे चल चल के थक थक के मरना नहीं, मृत्यु में मुक्ति नहीं शरीर चले, भले ही चले, मैं मुझ स्वरूप में ही मस्त हूं.
जानकर, समझ कर यह दुनिया, मरना नहीं, मृत्यु में मुक्ति नहीं दुनिया जानने में भले आये, मैं मुझ स्वरूप में ही मस्त हूं.
भावों से भावुक हो हंसते रोते मरना नहीं, मृत्यु में मुक्ति नहीं वीतरागता से रंगा हुआ मैं, मुझ स्वरूप में मस्त हूं.
मुझे जैन, पुजारी, व्रती बन मरना नहीं, मृत्यु में मुक्ति नहीं जैन तो स्वरूप ही है मेरा, मैं मुझ स्वरूप में ही मस्त हूं.
संबंधों को टिकाने में, निभाने में मरना नहीं, मृत्यु में मुक्ति नहीं सदैव ही अबद्ध, अविनाशी मुझ स्वरूप में ही मस्त हूं.
जीना, फिर मरना, फिर जीना नहीं, मृत्यु में मुक्ति नहीं जीते ही स्वयं मुक्त को पहचान, मैं मुझ स्वरूप में मस्त हूं.
109