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आदमी मान्यताओं का ही सबसे बड़ा गुलाम बनता है मान्यताओं से घिरा, मान्यताओं के ही पीछे लगा रहता है। क्या मानव स्वयं को सारी मान्यताओं से स्वतंत्र कर सकता है ? क्या मानव किसी भी मान्यता बगैर ही जी सकता है ?
इस संसार में नहीं, संसारी बनकर नहीं, संबंधों में नहीं, मुक्त मानवी स्वतंत्र, मान्यताओं बगैर ही, सच्चा मानवी होता है संसार में ही रहकर, हर मान्यता को चुनौती देता मानवी इस संसार से उपर सदा सुख और शांति में ही जीता है.
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