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शरीर मुझ में राग नहीं कराता, मैं शरीर का कुछ नहीं करता राग तो मेरे एक समय के अज्ञान का फल हैं, मुझ स्वभाव में नहीं मैं तो राग से भिन्न मुझ ज्ञानानंद का अनुभव कर सकता हूं
यही बात मुझे गुरु ने समझाई है, और मैंने समझी है, अब मैं सच ही जीवित हूं, मैंने मेरा जीवत्व पहचाना है, इन संयोगों से भिन्न मुझ स्वरूप को ही जानना, मानना ही एक मेरा पुरुषार्थ है, करना है, मैं हूं
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