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दाने दाने पर लिखा है
दुनिया कहती है, दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम, और ऐसा मानती भी है तो फिर क्या इस दाने को खाने की क्रिया और खाते खाते होता भाव भी लिखे ही हैं न!
राग-द्वेष के भाव तो होते ही हैं, हो ही जाते हैं न! इन राग-द्वेष के भावों के गरजते बादलों के पीछे श्वेत सूर्य की रौशनी भी है इन भावों को जानने पहचानने वाला भी है
इन्हीं भावों के पीछे ज्ञान भाव, वीतराग भाव शाश्वत है, सौम्य है, शांत और गंभीर भी है सदा के लिये एकसा ही रहता है ऐसा यह भाव स्थिर स्तम्भ सा आधार है, यह मैं हूं, मेरा है
इसी पंचम भाव में मुझे सुख, चैन, सुकून मिलता है, शांति, निडरता का भी अनुभव है इसी भाव को गुरु ने बताया, समझाया है इसी भाव से भरपूर उमड़ती मैं हूं, मैं ही हूं