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नमस्कारविवेचनम्
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रहस्यं द्वादशाङ्गीनां नमस्कारो न संशयः।
नमस्कारे समत्वं वै साररूपं प्रतिष्ठितम्।।४८।। द्वादशाङ्गी का रहस्य नमस्कार है इसमें कोई सन्देह नहीं। नमस्कार में सारभूत समता भरी है।।४८।।
मन्त्रेऽस्मिन् समतासारे मुक्तिलक्ष्मीकुलास्पदे।
नमस्कारे दृढा भक्तिः सदा मेऽस्तु भवे भवे।।४९।। समता का सार तथा मोक्षलक्ष्मी का एकमात्र स्थान इस नमस्कार महामन्त्र में, प्रत्येक भव में मेरी भक्ति दृढ हो।।४९।।
गुरोर्भद्रङ्कराख्यस्य पन्न्यासपदधारिणः।
प्रसादाद्रचितं भावान्नमस्कारविवेचनम्।।५०।। पंन्यास गुरु श्री भद्रकरविजयजी की कृपा से भावपूर्वक यह नमस्कार विवेचन की रचना की गई।।५।।