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विषयप्रवेश
प्रस्तुत आशाप्रेमस्तुति पण्डित गिरीशकुमार परमानन्द शाह रचित अप्रकाशित काव्यकृति आशाविलासतन्त्र का एक भाग है।
इस काव्य में 'आशा' शब्द 'कुण्डलिनीशक्ति' तथा 'गिरीश' शब्द 'शिव' के नाम का निर्देश करता है । कवि ने इस काव्य में उत्साहपूर्वक और धर्मनिष्ठता से कुण्डलिनी शक्ति की स्तुति की है। उस समय पूजा से जागृत होकर देवता महत्त्वाकांक्षियों को अमानवीय शक्तियाँ प्रदान करते हैं। इस कार्य को करते समय कवि ने काव्य की दृष्टि से 'शिव' और 'शक्ति' की एकता को दर्शाने का अच्छा प्रयास किया है।
इसी के साथ इस छोटी कृति में ऐसी शक्तियों की प्राप्ति के लिये गुप्त मार्ग से जादूई और आध्यात्मिक सिद्धांतों को समझाया है।
आध्यात्मिक तन्त्रशास्त्र के निष्णात इस कृति का केवल उपभोग लेकर इसके रस की प्रशंसा कर सकते हैं। तन्त्रविद्या के पुस्तकों के प्रगाढ अभ्यास के बिना इस काव्य के श्लोकों के अर्थ को समझना बहुत कठिन है।
अन्त में लेखक के साथ विचार विमर्ष करके अंग्रेजी जाननेवाले इस कृति को समझ सकें, इस तरह से शाब्दिक भाषांतर उपलब्ध किया है।
मैं आशा करता हूँ कि तन्त्रतत्त्वज्ञान में जो निपुण है उनको यह कृति उपयोगी
होगी।
जी. जी. भागवत