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कृतज्ञता:
मेरे परम उपकारी परम पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजय रामचंद्रसूरीश्वरजी महाराजा, पितृगुरुदेव परम पूज्य मुनिप्रवरश्री संवेगरति विजयजी म.सा.की पावन कृपा, बंधमुनिवरश्री प्रशमरतिविजयजी म. का स्नेहभाव एवं परम पूज्य साध्वीजी श्रीहर्षरेखाश्रीजीम. की शिष्या साध्वीजी श्रीजिनरत्नाश्रीजीम.का निरपेक्ष सहायकभाव मेरी प्रत्येक प्रवृत्ति की आधारशिला है। आपके उपकारों से उऋण होना संभव नहीं है।
संपादन के इस कार्य में मुझे पूज्य आ.श्री मुनिचंद्रसू.म. का मार्गदर्शन, प्रेरणा एवं सहायता प्राप्त होती रही है। आपकी उदारचित्तता को शत शत नमन। संपादन कार्य में श्रुतभवन संशोधन केन्द्र के सभी संशोधन सहकर्मियों ने भक्ति से सहकार्य किया है, अतः वे साधुवादाह है।
इस ग्रंथ का यथामति शुद्ध संपादन करने का प्रयास किया है। फिर भी प्रमादवश कुछ अशुद्धियाँ रह गई हो, तो विद्वान् पाठकगण सम्पादक के प्रमाद को और भूल को क्षमा प्रदान करेंगे ऐसी विनम्र प्रार्थना है।
- वैराग्यरतिविजय श्रुतभवन,पुणे
२७.५.१३